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उ. 'जे अइया सिद्धा ............ तिविहेण वंदामि' नामक द्वितीय अधिकार
में 'द्रव्य जिन' अर्थात् जो 34 अतिशयों की संपदा को प्राप्त कर सिद्ध हो चुके है अथवा भविष्य में होने वाले है ऐसे द्रव्य जिन को वंदना की
. गई है। प्र.929 इन्हें द्रव्य जिन क्यों कहा गया है ? उ. चेतन या अचेतन, जो भूत या भावी पदार्थ का कारण होता है उसे तत्त्वज्ञ
द्रव्य मानते है । भावी तीर्थंकरों की बाल्यावस्था व पूर्वावस्था, भावी में कारण रुप द्रव्य जिन है और सिद्धावस्था भी भूतकारण रुप द्रव्य जिन
है, इस अपेक्षा से इन्हें द्रव्य जिन कहा गया है। प्र.930 द्रव्य अरिहंत भी अर्हद्भाव ( तीर्थंकरत्व) को प्राप्त होने पर वंदनीयः
ही माने जाते है और वह प्रथम अधिकार का विषय है । फिर 'जे अ अइया सिद्धा' से पुनः उन्हें वंदना करना क्या पुनरुक्त दोष नहीं
उ. वर्तमान या भावि जिन अर्हदवस्थापन्न ही वंदनीय है, न कि नरकादि
पर्याय में रहे हुए वर्तमान या भावि द्रव्य तीर्थंकर, यह विशेष रुप से सूचित
करने के लिए ही द्वितीय अधिकार है । प्र.931 नरकावास में भी श्रेणिक महाराज क्यों और किस अपेक्षा से
वंदनीय है ? नरक में भी श्रेणिक महाराज के तीर्थंकर नामकर्म का प्रदेशोदय है, इस कारण वे द्रव्य निक्षेप की अपेक्षा से वंदनीय है।
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बारहवाँ अधिकार द्वार
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