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ये कायोत्सर्ग करने की परम्परा थी। कायोत्सर्ग न करने का निषेध कहीं पर मही किया गया है । इन कायोत्सर्ग से ज्ञान की उपवृंहणा होती है अर्थात् ज्ञानाचार का पालन होता है । इसमें तो मात्र देवताओं को स्मरण किया जाता है 'वंदण-वत्तियाए' आदि पदों के द्वारा वंदन पूजन, सत्कार
आदि नहीं किया जाता है, अतः किसी प्रकार से दोष लगने की किंचित् मात्र ही सम्भावना नहीं है।
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चौदहवां स्मरणीय द्वार
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