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चौदहवाँ स्मरणीय द्वार प्र.991 शासन वैयावृत्य करने वाले सम्यग्दृष्टि देवताओं का स्मरण किस
अधिकार में किया गया है ? उ. बारहवें अधिकार में स्मरण किया गया है । प्र.992 सम्यग्दृष्टि देवता स्मरणीय ही क्यों है ? उ. सम्यग्दृष्टि देवता गुणस्थानक की अपेक्षा से सर्वविरतिधर और देशविरति
धर वालों से नीचे स्थान पर होते है । गुणस्थानक की अपेक्षा से निम्न
स्थान पर होने के कारण वे स्मरणीय है। प्र.993 क्या सम्यग्दृष्टि शासन देवी-देवताओं की अष्ट द्रव्य से पूजा की
जा सकती है? सम्यग्दर्शन तो त्रिलोक पूज्य है ही। फिर भी जैन धर्म में वीतरागता की उपासना है। जिस समयग्दर्शन के साथ वीतरागता जुड़ जाती है वही सम्यग्दर्शन अष्ट द्रव्य से पूजा जाता है। शासन देव सम्यग्दर्शन से युक्त होने के कारण.सम्मान के पात्र है। उनका भाल पर तिलक लगाकर बहुमान
किया जाता है। 1994 अव्रती श्रुत देवता तथा क्षेत्र देवता के स्मरणार्थ कायोत्सर्ग करने ,
से क्या मिथ्यात्व का दोष लगता है ? 3. आवश्यक सूत्र की वृहद्वृत्ति के प्रारंभ में ग्रंथ रचयिता पू.आ.श्री
हरिभद्रसूरिश्वरजी म. ने श्रुत देवता को नमस्कार किया है और आवश्यक सूत्र की पंचांगी में श्रुत देवता आदि का कायोत्सर्ग करना चाहिए ऐसा कथन किया गया है। पूर्वधर वाचक उमास्वातिजी म. के काल में भी
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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