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और भविष्य) की तीन चौबीसियों के 72 तीर्थंकरों को वंदन किया है। 6. छट्टे अर्थ में चार और आठ जोडने से बारह हुए । इनको दसौं से गुणा करने से (8 + 4 x 10) 120 हुए और इनको दो से गुणा. करने से (120 x 2) 240 हुए। पांच भरत तथा पांच ऐरावत कुल दस क्षेत्रों की एक-एक वर्तमान चौबीसी को मिलाकर 240 जिनेश्वरों परमात्मा को वंदन किया है ।
7. सातवें अर्थ में - मूल चार है तथा आठ को आठ (8 × 8) से गुणा करने से 64 हुए एवं दस को दस से (10 × 10) गुना पर 100 हुए। इन तीनों को (4 + 64 + 100) मिलाने ( जोडने ) से 168 हुए और इनमें दो जोड देने से 170 हुए। इस प्रकार से एक साथ उत्कृष्ट विचरण करने वाले 170 हुए ।
8. आठवें अर्थ में अनुत्तर, ग्रैवेयक, विमानवासी तथा ज्योतिषी ये चार स्थान उर्ध्वलोक में है तथा आठ व्यंतर निकाय, दस भवनपति निकाय ये अधोलोक के स्थान में है और मनुष्य लोक में शाश्वत एवं अशाश्वत ये दो प्रकार के चैत्य है । इससे तीनों लोकों के चैत्यों को वंदन किया है।
इस प्रकार इस गाथा में तीर्थवंदना लक्षण और भी बहुए अर्थ है ये वसुदेवहिण्डी आदि ग्रन्थों से जान सकते है ।
प्र.964 1-12 अधिकारों के प्रथम पद, अंतिम पद, वंदन और दण्डक सूत्र
के नाम लिखिए |
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बारहवाँ अधिकार द्वार
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