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देव ऐसे कौन कौन से स्व समान फल दूसरों में भी उत्पन्न करने में सक्षम होते है | आराध्य देव की उदार प्रवृत्ति को बताने हेतु आठवें स्थान पर 'आत्म तुल्य पर फल कर्तृत्व नामक (निज समफलद) संपदा : का उपन्यास करते हैं ।
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अंत में दीर्घदृष्टा का मन यह जानने को उत्कंठित होता है कि ऐसे विशिष्ट गुणों के धारक हमारे आराध्य देव अंत में जाकर कौन से प्रधान अक्षय गुण, प्रधान अक्षय फल एवं अभय के स्वामी होते है, उनकी ऐसी जिज्ञासा के शमनार्थ यहाँ नौवें स्थान पर प्रधानगुण - परिक्षय-प्रधान फल प्राप्ति 'अभय संपदा' का उपन्यास किया गया ।
इस प्रकार की जिज्ञासा जिज्ञासु के मन में क्रमश: तरंगित होती है इसलिए जिज्ञासा की तृप्ति हेतु तदनुरूप क्रम से ही संपदा का उपन्यास करना उचित प्रतीत होता है ।
ध्येय
प्र.881 नमुत्थुणं सूत्र में नमस्कार करना साधक ( ध्याता ) का मुख्य है फिर इसमें सूत्रकार ने उनकी संपदाओं का उपन्यास क्यों किया ? उ. उपन्यास से यह ज्ञापित करना कि इतनी संपदाओं से सम्पन्न श्री अर्हत् परमात्मा मोक्ष प्राप्ति में कारणभूत है, क्योंकि इन संपदा - गुणों की ऐसी महिमा है कि वे जीवों के मोक्षमार्ग की साधना के 1. गुणसम्पन्न परमात्मा मोक्षकारक है, परमात्मा की
प्रेरक होते है ।
संपदा में वर्णित
अनन्यलभ्य गुण ऐसे है; जो हमारे मोक्ष प्राप्ति में कारण भूत है ।
2. अरिहंत परमात्मा के संपदा - गुणों के प्रति बहुमान भाव शुभानुष्ठान को भावानुष्ठान बनाता है ।
3. सम्यग् अनुष्ठान (भवानुष्ठान) हेतु अशुभ कर्मों का क्षय एवं शुभ कर्मों का उपार्जन आवश्यक है
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शक्रस्तव की संपदा
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