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प्र.902 पांचवीं संपदा को बहुवचनान्त आगार संपदा क्यों कहते हैं ? उ. पांचवीं संपदा के तीनों ही पद सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं - खेल संचालेहिं और सुहुमेहिं दिट्ठि - संचालेहिं बहुवचनान्त होने के कारण इसे बहुवचनान्त आगार संपदा कहते है
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प्र.903 'एवमाइएहिं ..
उ. एकवचनान्त व बहुवचनान्त आगार के अतिरिक्त उपलक्षण से अन्य चार आगार (अगणि, छिंदण, खोभाई, डक्को) वाली तथा छः पद वाली छुट्ठी संपदा का सहेतुक नाम 'आगन्तुक आगार' संपदा है । जिस प्रकार आगन्तुक (मेहमान) के आगमन पर हमारा अधिकार नही होता है उसी : प्रकार इन क्रियाओं पर भी हमारा किसी भी प्रकार का अधिकार नही होता है। ऐसे अनैच्छिक आगारों का कथन इस संपदा में होने से इसे आगंतुक आगार संपदा नाम दिया गया ।
प्र.904 ऐसी अनाधिकारी आगारिक क्रियाओं को रोकने से क्या हानि होती
है ?
ऐसी अनैच्छिक क्रियाओं को रोकने से समाधि भंग हो जाती है । मन असमाधि ग्रस्त (विचलित) हो जाता है और चित्त की स्वस्थता व शांति भंग हो जाती है ।
उ.
हुज्ज मे काउस्सग्गो' पद तक की छुट्ठी संपदा का सहेतुक विशेष नाम क्या है और यह नाम क्यों दिया गया ?
प्र.905 अवधि सुचक संपदा किसे और क्यों कहते है ?
उ.
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कायोत्सर्गावधि संपदा को अवधि सुचक संपदा कहते है । क्योंकि इस संपदा में कायोत्सर्ग की अवधि का प्रमाण (माप) बताया है अर्थात् जब तक मैं 'नमो अरिहंताणं' यह पद बोलकर कायोत्सर्ग को पूर्ण न करूं,
चैत्यस्तव की संपदा
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