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साधारण हेतु संपदा है। किंतु तीर्थंकरत्व व स्वयं सम्बोधित्व स्तोतव्य (तीर्थंकर) के असाधारण गुण है, जो केवल मात्र अरिहंत परमात्मा में ही होते है। अतः साधारण-असाधारण गुणस्वरुप दुसरी संपदा का नाम
ओघ हेतु (साधारण-असाधारण हेतु) संपदा रखा गया। प्र.863 दुसरी ओघ हेतु संपदा में कौनसे पद है ? उ. आइगराणं, तित्थयराणं और सयंसंबुद्धाणं नामक तीन पद है । प्र.864 तीसरी संपदा का सहेतुक विशिष्ट नाम क्या है और कौनसे पदों
का समावेश इस संपदा में होता है ? उ. इस संपदा का सहेतुक विशिष्ट नाम 'विशेष हेतु' संपदा है और
'पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवर-पुंडरियाणं, पुरिसवर-गन्धहत्थीणं'
नामक पदों का समावेश इस संपदा में होता है । प्र.865 तीसरी संपदा को स्तोतव्य संपदा की विशेष हेतु (असाधारण)
संपदा क्यों कहा गया है ? उ. तीर्थंकर परमात्मा पुरुषोत्तमता (पुरुषों में ज्ञानादि गुणों से उत्तम), पुरुष
सिंहपन (पुरुषों में सिंह के समान), पुरुष पुण्डरीकता (पुण्डरिक नामक कमल के गुणों से युक्त) और पुरुष गन्ध हस्तिपन (गंध हस्ती के गंध गुणों से युक्त) आदि अतिशय वाले विशिष्ट गुण धर्मों से युक्त होने के कारण स्तोतव्य है, इसलिए तीसरी संपदा को स्तोतव्य संपदा की
विशेष. हेतु संपदा कहा गया है। 1.866 चौथी संपदा का सहेतुक विशेष नाम क्या है और इस संपदा में
किन-किन पदों का समावेश किया गया है ? उ. इस संपदा का सहेतुक विशेष नाम 'उपयोग हेतु संपदा' है और इसमें
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ बैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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