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चार, पांच, पांच, पांच, दो, चार और तीन पद है ।
उ.
प्र. 858 नमुत्थुणं सूत्र की प्रत्येक संपदा के प्रथम पद का नाम बताइये ? संपदा के प्रथम (आदि) पद क्रमशः नमु., आइग., पुरिसो., लोगु., अभय., धम्म., अप्प., जिण और सव्व है ।
प्र.859 नमु आइग - पुरिसो- लोगु - अभय - धम्म- अप्प - जिण- सव्व के क्या तात्पर्य है ?
नमु-नमुत्थुणं, आइग-आइगराणं, पुरिसो- पुरिसुत्तमाणं, लोगु-लोगुत्तमाणं, अभय-अभयदयाणं,धम्म- धम्मदयाणं, अप्प - अप्पडिहय वरनाण, जिणजिणाणं, सव्व-सव्वन्नूणं ।
प्र. 860 नमुत्थुणं सूत्र की संपदा के सहेतुक विशिष्ट नाम क्या है ? उ. नमुत्थुणं सूत्र की संपदा के सहेतुक विशिष्ट नाम क्रमशः 1. स्तोतव्य संपदा 2. ओघ हेतु संपदा 3. विशेष हेतु संपदा 4. उपयोग हेतु संपदा 5. तद् हेतु संपदा 6. सविशेषोपयोग संपदा 7: स्वरुप संपदा 8. निजसमफलद संपदा 9. मोक्ष संपदा है ।
प्र. 861 प्रथम संपदा का नाम स्तोतव्य संपदा क्यों रखा ?
उ.
उ.
स्तोतव्य यानि स्तुति योग्य । अरिहंतपन व भगवंतपन से युक्त देव (तीर्थंकर परमात्मा) ही स्तुति योग्य होते है । इसलिए अरिहताणं और भगवंताणं नामक दो पदों वाली प्रथम संयुक्त संपदा का नाम स्तोतव्य संपदा रखा गया ।
प्र. 862 दुसरी संपदा का नाम 'ओघ हेतु' संपदा क्यों रखा गया ? उ. 'आइगराणं' स्तोतव्य का सामान्य हेतु है, क्योंकि मोक्षावस्था से पूर्व छद्मस्थ (संसारी) अवस्था में तीर्थंकर परमात्मा का जीव अन्य जीवों के समान जन्म-मरण करने वाला होता है, इसलिए यह ओघ हेतु की
शक्रस्तव की संपदा
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