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3. अव्यत्यानेडितः -संपदा प्रमाण बोलना अर्थात् रुकने के स्थान पर ही
रुकना अन्य स्थान पर नही ।। 4. प्रतिपूर्ण:- अनुस्वार, मात्रा आदि का ध्यान रखते हुए शुद्ध बोलना। 5. प्रतिपूर्ण घोष- उदात, अनुदात, घोष(उच्च स्वर, निम्न स्वर में) के
प्रमाणानुसार शब्दों का उच्चारण करना । 6. कंठोष्ठविप्रमुक्त:- सूत्रों को स्पष्ट बोलना न कि बालक के समान
. अस्पष्ट । 7. गुरूवचनोपगत- सूत्र गुरू से सीखे हुए होने चाहिए । प्र.666 पांच नमुत्थुणं द्वारा उत्कृष्ट चैत्यवंदन कैसे होता है ? उ. परमात्मा की चरण वंदना करके अंगोपांग को संकुचित कर योग मुद्रा से
परमात्मा के सम्मुख परमात्मा का चैत्यवंदन-जंकिंचि तत्पश्चात् 1. नमुत्थुणं बोले । तत्पश्चात् इरियावहिया.......... अन्नत्थ..........
काउस्सग्ग (25 श्वासोश्वास प्रमाण / चंदेसु निम्मलयरा तक एक लोग्गस्स) प्रगट लोग्गस्स कहें। तत्पश्चात् दोनों घुटनों को भूमि पर
टिकाकर जिनेश्वर परमात्मा का चैत्यवंदन.......जंकिंचि । 2. नमुत्थुणं........ अरिहंत चेइयाणं ......... अन्नत्थ ...... एक
नवकार काउस्सग्ग ...अध्रुव स्तुति. (1), लोगस्स ........ सव्वलोए अरिहंत चेइयाणं ......... अन्नत्थ.......... एक नवकार का काउस्सग्ग ......... ध्रुव स्तुति (2), पुक्खरवरदी ......... सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्ग....... अन्नत्थ........ एक नवकार का कायोत्सर्ग ..... श्रुत ज्ञान स्तुति (3), सिद्धाणं बुद्धा ......
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पांचवाँ चैत्यवंदना द्वार
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