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कहना, मस्तक झुकाना और हाथ जोडना, यह द्रव्य नमस्कार कहलाता है। भाव नमस्कार -'नमस्कर्तव्यानां गुणानुरागो भावनमस्कार स्तत्र रतिः।' अर्थात् पूजनीय,नमस्करणीय व्यक्ति के गुणों में अनुराग रखना,
भाव नमस्कार है। भगवती आराधना / वि. / 722 / 897 1 2 नमस्कार के चार प्रकार : 1.नाम 2. स्थापना 3. द्रव्य 4. भाव ।
भ.आ. / वि./ 753/916 / 5 नमस्कार के तीन प्रकार : आशीर्वस्तुनमस्क्रियाभेदेन नमस्कारस्त्रिधा।'
अर्थात् आशीर्वाद,वस्तु और नमस्क्रिया । प्र.673 क्या भाव नमस्कार में ही सच्चा नमस्कारत्व धर्म है, द्रव्यादि नमस्कार
में नही ?
उ. - द्रव्य नमस्कार- व्यवहार नमस्कार, गौण नमस्कार आदि में तात्त्विक नमस्कार
धर्म नही पाया जाता है, क्योंकि इस नमस्कार में भाव संकोचात्मक पूजा का स्वरुप और वीतराग फल को उत्पन्न करने का सामर्थ्य नही होता है। जबकि तात्त्विक धर्म, अरिहंत परमात्मा को कृत भाव नमस्कार में है। वीतराग परमात्मा को कृत भाव नमस्कार हमारे भीतर वीतराग दशा को उत्पन्न करता है और उस अद्वितीय दशा को प्राप्त करवाता है । अतः भाव नमस्कार में
ही सच्चा नमस्कारत्व है। प्र.674 द्रव्य संकोच और भाव संकोच से क्या तात्पर्य है ? उ. कर- शिरः पादादि सन्यासो द्रव्य संकोच: भाव संकोचस्तु विशुद्धस्य 'मनसो नियोग इति । अर्थात् हाथ, मस्तक, पैर आदि को सम्यक्तया संकुचित करके रखना, द्रव्य संकोच है और उसमें विशुद्ध मन को जोड़ना
भाव संकोच है। ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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