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स्तुति ।
श्राद्ध विधि प्रकरण। 2. इरियावहिया. + तस्स उत्तरी सूत्र० + अन्नत्थ. + चंदेसु निम्मलयरा
पर्यन्त एक लोगस्स अथवा चार नवकार का कायोत्सर्ग + प्रगट लोगस्सo + चैत्यवंदन + जंकिंचि० + नमुत्थुणं० + जावंति चेइयाइं० + जावंत केवि साहू, + स्तवन + जय वीयराय. + अरिहंत चेइयाणं
+ अन्नत्थ० + एक नवकार का कायोत्सर्ग + अध्रुव स्तुति । प्र.607 प्रणिपात की अपेक्षा मध्यम चैत्यवंदना के प्रकार बताइये ? उ. दो प्रकार - 1. दो प्रणिपात द्वारा 2. तीन प्रणिपात ।
इरियाबहिया + एक नमुत्थुणं = दो प्रणिपात । इरियावहिया + दो नमुत्थुणं = तीन प्रणिपात । एक जिनमंदिर में इरियावहिया सहित चैत्यवंदन करके, दूसरे जिनमंदिर में, जो कि 100 हाथ से कम दूरी पर स्थित है, तो बिना इरियावहिया किये जो चैत्यवंदन किया जाता है, वह तीन प्रणिपात वाला चैत्यवंदन कहलाता है। अर्थात् पूर्वकृत इरियावहिया + पूर्वकृत नमुत्थुणं व बिना इरियावहिया के सीधा नमुत्थुणं सूत्र के द्वारा चैत्यवंदन करना । यहाँ प्रणिपात शब्द का प्रयोग नमुत्थुणं सूत्र व खमासमण सूत्र (इच्छामि
खमासमण) दोनों के लिए किया गया है। इरियावहिया करने से पूर्व जो • खमासमणा दिया जाता है, वह एक प्रणिपात इरियावहिया का गिना जाता है।
इरियावहिया + एक नमुत्थुणं = दो प्रणिपात ।चै. महाभाष्य गाथा 169-171 प्र.608 स्तुति युगल व स्तुति युगल युगलक से क्या तात्पर्य है ? उ. प्रथम तीन स्तुति वंदनीक; प्रथम स्तुति में तीर्थंकर विशेष की स्तवना
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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