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उ. निम्न तीन गुणों से- 1. बहुमान 2. विधितत्पर 3. उचित वृत्ति से युक्त होना
चाहिए। 1. बहुमान - जो धर्म, अर्थ व काम, इन तीन पुरुषार्थ में से केवल धर्म
पुरुषार्थ को ही श्रेष्ठ मानता है। हर पल धर्म के स्वरुप को जानने को
इच्छुक हो । 2. विधि तत्पर - उसी क्रिया में रुचि लेता हो, उसी को प्रधानता देता
हो, जो इहलोक व परलोक दोनों को लिए लाभकारी हो । 3. उचित्त वृत्ति - स्वकुल के अनुसार उचित्त पवित्र आजीविका वाला
हो। प्र.633 उपरोक्त तीनों लक्षणों में बहुमान को प्रथम स्थान पर क्यों रखा ? उ. भावों में क्रिया (चैत्यवंदनादि धर्म क्रिया) के प्रति बहुमान के अभाव में विधि
तत्परता नही आ सकती क्योंकि विधि भाव प्रधान है और बहुमान भाव के अभाव में मन में चैत्यवंदन से सम्बन्धित संवेग, संभ्रमादि भावोल्लास, जो कि चैत्यवंदन कृत्य करने में हेतभूत है. वह प्रकट नही होगा। बिना भावोल्लास, बिना श्रद्धा से कृत क्रिया 1 अंक के अभाव में शुन्य के समान
निरर्थक है । इसलिये प्रथम स्थान पर रखा । __प्र.634 चैत्यवंदन के अधिकारी को बाह्य स्वरुप से कैसे जान सकते है ? ' उ. निम्नोक्त लक्षणों से जान सकते है - 1. बहुमान के लक्षण (लिंग) - 1. धर्म कथा प्रीति 2. धर्म निंदा
अश्रवण 3. धर्म निन्दक अनुकंपा 4. धर्म में चित्त स्थापन 5. उच्च
धर्म जिज्ञासा । 2. विधितत्परता - 1. गुरू विनय 2. उचित कालापेक्षा 3. उचितमुद्रा · + +++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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