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(वंदना ), दूसरी स्तुति में 24 तीर्थंकर परमात्मा अथवा सर्वजिन को वंदना व तीसरी स्तुति में श्रुतज्ञान की वंदना की जाती है, होने से वंदना स्तुति रुप एक ही स्तुति मानी जाती है। चौथी स्तुति सम्यग्दृष्टि देवों के स्मरणार्थ होने के कारण इसे अनुशास्ति स्तुति कहते है; जो प्रथम तीन स्तुति से वर्ग (विषय) विभेद होने के कारण दूसरी स्तुति मानी जाती है। इस प्रकार चार स्तुति के समुह को 'एक स्तुति युगल' कहा जाता है ।
एक स्तुति युगल में अन्य दूसरी चार स्तुति अर्थात् एक स्तुति युगल को और मिलाने से जो दो स्तुतियों के युगल बनते है, उसे 'स्तुति युगल युगलक' कहते है ।
प्र.609 उत्कृष्ट चैत्यवंदन कैसे किया जाता है ?
उ. पांच दण्डक (पांच नमुत्थुणं), स्तुति चतुष्क ( दो युगल / आठ स्तुति), स्तवन और प्रणिधान त्रिक ( जावंति चेइयाई, जावंत केवि साहू, जय
वीयराय) द्वारा उत्कृष्ट चैत्यवंदन होता है ।
वर्तमान में पौषध आदि में देववंदन करते समय यही चैत्यवंदना की जाती है।
त्रिस्तुतिक में पांच दण्डक सूत्र, तीन स्तुति और प्रणिधान द्वारा उत्कृष्ट चैत्यवंदन किया जाता है
।
प्र. 610 अन्य आचार्य मतानुसार त्रिविध चैत्यवंदन के प्रकार बताइये ? उ. देववंदन में यदि एक बार नमुत्थुणं का पाठ आता है तो वह जघन्य चैत्यवंदन, दो या तीन बार नमुत्थुणं का पाठ आता है तो वह मध्यम और चार या पांच बार नमुत्थुणं का पाठ आता है तो वह उत्कृष्ट चैत्यवंदन कहलाता है ।
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पांचवाँ चैत्यवंदना द्वार
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