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2. मध्यम-मध्यम चैत्यवंदन-इरियावहिया० + नमस्कार + नमुत्थुणं० +
अरिहंत चेइयाणं + स्तुति द्वारा परमात्मा की जो स्तवना की जाती
है, उसे मध्यम-मध्यम चैत्यवंदन कहते है। 3. मध्यम-उत्कृष्ट चैत्यवंदन - इरियावहिया + नमस्कार + नमुत्थुणं०
+ अरिहंत चेइयाणं० + स्तुति + लोगस्सo + स्तुति + पुक्खरवरदी + स्तुति + सिद्धाणं-बुद्धाणं० सूत्र की तीन गाथा द्वारा परमात्मा की
जो स्तुति की जाती है उसे मध्यम- उत्कृष्ट चैत्यवंदन कहते है। प्र.616 उत्कृष्ट चैत्यवंदन के भेदों का स्वरुप बताइये ? . उ. 1. उत्कृष्ट-जघन्य - इरियावहिया. + नमस्कार + नमुत्थुणं० + अरिहंत
चेइयाणं + स्तुति + लोगस्स. + स्तुति + पुक्खरवरदी० + स्तुति +
सिद्धाणं बुद्धाणं० + नमुत्थुणं + प्रणिधान त्रिक । 2. उत्कृष्ट - मध्यम - आठ स्तुति युक्त देववंदन । (मंदि का देववंदन) 3. उत्कृष्ट - उत्कृष्ट - आठ स्तुति + स्तोत्र + नमुत्थुणं० + जावंति
चेइयाइं० + जावंत केवि साहू. + जय वीयराय० । अर्थात् वर्तमान में
कृत देववंदन। प्र.617 आवश्यक नियुक्ति के अनुसार शुद्ध व अशुद्ध वंदना के प्रकारों को
उदाहरण से समझाइये ? उ. चार प्रकार -1. द्रव्य व भाव दोनों से अशुद्ध 2. द्रव्य से शुद्ध पर भाव
से अशुद्ध 3. द्रव्य से अशुद्ध परंतु भाव से विशुद्ध 4. द्रव्य व भाव दोनों से विशुद्ध । 1. द्रव्य व भाव दोनों से अशुद्ध - अशुद्ध वेश व अशुद्ध भाव दोनों
से कृत वंदना अशुद्ध वंदना है। जैसे - चरकादि सन्यासी, जो वेश ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
पांचवाँ चैत्यवंदना द्वार
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