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है। 'अखंड तंदुलादि वडे स्वस्तिक करी तेने उपर उत्तम जातिना फल मूके' यह पंक्ति, पूर्व काल में फल स्वस्तिक पर चढ़ाया जाता
था, इसे सिद्ध करता है। 2. एक 'ज्ञानप्रकाश' नामक प्राचीन पुस्तक में जिन पूजा के विषय पर
पेज नं. 70 में 'भाईयोनी कथा' में बताया है कि 'अक्षत वडे करेला स्वस्तिक उपर श्रीफल तथा बीजं केरी, दाडम, जमरुख
(अमरुद) विगेरे लीला फल अने सोपारी, बदाम विगेरे सुकां . फलो ढोवामां आवे छे.' उपरोक्त ये पंक्तियाँ स्वस्तिक पर फल
चढ़ाने की परम्परा को प्रमाणित करती है । 3. "विविध विषय-विचार माला" नामक मान्य ग्रन्थ में भी फल को
साथिये पर चढ़ाने के कथन को समर्थन दिया है ।
अतः यह सिद्ध होता है साथिये पर फल चढ़ाने, की प्रथा प्राचीन है। जबकि सिद्धशिला पर फल चढ़ाने की प्रथा अर्वाचीन (नूतन) है। किन्तु
हमें वर्तमान परम्परानुसार ही पूजा करनी चाहिए । प्र370 पूजा व सत्कार में क्या अन्तर हैं ? . उ. पूजा में जल, चन्दन, अभिषेक, अर्चन विलेपन आदि का समावेश होता __है, जबकि सत्कार में वस्त्र, अलंकार आदि उत्तम द्रव्यों का अर्पण होता हैं। प्र.371 परमात्मा का सत्कार करने से क्या लाभ होता है ? उ. परमात्मा का सत्कार करने से भौतिक वस्तुओं के प्रति मूर्छा और आसक्ति
के भावों का क्षय होता है। प्र372 श्रावक को निषेध फल (सीताफलादि) परमात्मा के सम्मुख चढ़ाया
जा सकता हैं ? +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
चतुर्थ पूजा त्रिक
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