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आत्महित की आशंसा को नष्ट कर शुद्ध धर्म की अपेक्षा का नाश कर
देती है जिससे धर्म कल्प वृक्ष मुलतः उच्छिन्न हो जाता है । प्र.546 षोडशक शास्त्रानुसार प्रणिधान का स्वरुप बताइये ? उ. ऐसे मानसिक शुभ परिणाम जिसमें -
1. स्वीकार्य अहिंसादि धर्म स्थान की मर्यादा में अविचलितता हो । 2. उस धर्मस्थान से अधः वर्ती जीवों के प्रति करुणाभाव हो, द्वेष नहीं। 3. सत्पुरुषों के 'स्वार्थ गौण और परार्थ मुख्य' स्वभावानुसार परोपकार
करण प्रधान हो । 4. प्रस्तुत धर्म स्थान सावध विषय से रहित निरवद्य वस्तु सम्बन्धित हो । प्र.547 निदान किसे कहते है ? उ. जो प्रणिधान पौद्गलिक सुख अर्थात् संसार के भौतिक सुख, सम्पदा,
ऐश्वर्यादि की प्राप्ति हेतु (उद्देश्य, कारण) किये जाते है, उसे निदान कहते
प्र.548 निदान के प्रकारों के नाम बताइये ? उ. तीन प्रकार- 1. इहलोक सम्बन्धी निदान 2. परलोक सम्बन्धी निदान 3.
काम-भोग सम्बन्धी निदान । प्र.549 इहलोक सम्बन्धी निदान किसे कहते है ? उ. चैत्यवंदन महाभाष्यानुसार - "सोहग्ग-रज्ज-बल..........इहलोय
नियाणमेयं तु ॥" मनुष्य लोक में सौभाग्य, राज्य, बल, वीर्य, रुप, संपदा आदि संसार वैभव की प्राप्ति हेतु (कामनार्थ) जो धर्म किया जाता है, उसे इहलोक सम्बन्धी निदान कहते है। अर्थात् इस लोक के पौद्गलिक सुखों
के कामनार्थ धर्म क्रिया करना, इहलोक सम्बन्धी निदान है ।चै. म. गाथा 857 +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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