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(प्रणिधान) नामक अभिगम होते है । प्र.583 उतरासंग और अञ्जलि नामक दो अभिगम का स्त्रियों के लिए निषेध
क्यों किया गया है ? उ. स्त्रियों को विशेष रुप से शरीर को ढककर विनय से नम्र शरीर वाली होकर
जाना चाहिए । सिद्धान्त में कहा – “विणओण याए गायलट्ठीएत्ति" अर्थात् विनय से नम्र शरीर वाली, इस कथानुसार प्रणिधान त्रिक आदि बोलते समय स्त्रियों को सिर पर हाथ लगाते हुए अंजलिबद्ध प्रणाम नही करना चाहिए क्योंकि इस प्रकार से हाथ ऊपर करने से हृदय आदि शरीरावयव दिखाई
देते है, जो अनुचित है । इस अपेक्षा से निषेध किया गया है । प्र.584 श्रावक को जिनमंदिर में कैसे प्रवेश करना चाहिए ? उ. "सच्चित्ताणं दव्वाणं विउसरण याए । अचित्ताणं दव्वाणं अविउसरण
याए । एगल्ल साडएण, उत्तरासंगेण चक्खुफासे अञ्जलि पग्गहेणं । मणसो एगत्ति करणेणं त्ति ।" भगवती सूत्र व ज्ञाता धर्म कथानुसार श्रावक को सचित्त वस्तुओं का त्याग, अचित्त वस्तुओं का अत्याग (ग्रहण कर), अखण्ड एक वस्त्र का उत्तरासंग धारण कर, परमात्मा के दर्शन होते ही सिर झुकाकर और हाथ जोडकर 'नमो जिणाणं' उच्चारित करते हुए मन को पूर्ण एकाग्र करके परमात्मा के
मंदिर में प्रवेश करना चाहिए। प्र.585 अन्य प्रकार से पांच अभिगम कौन से है ? .. उ. राजा को निम्न पांच राज चिह्न का त्याग करके मंदिर में प्रवेश करना चाहिए
- 1. तलवार 2. छत्र 3. मोजड़ी 4. मुकुट 5. चामर । ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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