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प्र.586 उपरोक्त पांच राज चिह्नों के साथ मंदिर में प्रवेश क्यों नही करना
चाहिए ?
राज चिह्नों के साथ जिनमंदिर में प्रविष्ट होना, परमात्मा के सम्मुख अपनी ऋद्धि-समृद्धि, वैभव आदि को प्रदर्शित करना, एक प्रकार से परमात्मा की अविनय आशातना करना है ।
उ.
प्र.587 तलवार, छत्र, मोजडी, मुकुट और चामर ये पांच अभिगम किस के . लिए कहे गये है ?
उ.
राजादि ऋद्धिवान श्रावकों के लिए कहे गये है ।
प्र.588 पुष्पमाला, मुकुट आदि बाहर त्याग करके जाने के पश्चात् भी मंदिर में महापूजनादि के समय इन्हें क्यों धारण किये जाते है ?
परमात्मा का लोकोत्तर विनय साचने (रखने) हेतु पुष्पमाला आदि का त्याग करके जाते है। पूजनादि में इन्द्र परम्परा का निर्वाह करने के हेतु से स्वयं को साक्षात् देवलोक का इन्द्र मानते हुए मुकुट आदि धारण किये जाते है । प्र.589 जिनमंदिर विधि पूर्वक जाना चाहिए । यहाँ 'विधि शब्द' से क्या तात्पर्य है ?
उ.
उ. विधि यानि यदि राजा, मंत्री अथवा कोई महान् ऋद्धिवान् श्रावक हो तो "सव्वाए इड्ढीए, सव्वाए जुइए, सव्व बलेणं सव्व पोरिसेणं" अर्थात् 'समस्त ऋद्धिपूर्वक' यानि बहुत धन का दान देते हुए, छत्र, चामर आदि राज चिह्न धारण करके, 'सर्व क्रान्ति' अर्थात् उत्तम, वस्त्र, आभुषण, अलंकार आदि से सुशोभित होकर, 'सर्वबल' अर्थात् चतुरंगी सेना के साथ
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दूसरा अभिगम द्वार
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