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प्र.540 प्रार्थना प्रणिधान तो आशंसा स्वरुप होने से एक प्रकार का निदान है और निदान मोक्ष प्राप्ति में बाधक तत्त्व है, फिर भी प्रार्थना प्रणिधान क्यों ?
प्रार्थना प्रणिधान निदान नही है, क्योंकि निदान के लक्षण पौद्गलिक आशंसादि रुपता इसमें नहीं हैं ।
I
प्रणिधान प्रार्थना की प्रवृत्ति तो समस्त पौद्गलिक सङ्ग से विनिर्मुक्त असङ्गभाव से जुड़े चित्त की महान प्रवृत्ति है । ऐसा मोक्षासक्त चित्त व्यापार मोक्ष का बाधक नहीं, अपितु मोक्ष का अनुकुल साधन है । क्योंकि यह भव निर्वेदादि की आशंसा - प्रवृत्ति प्रणिधान रुप है और बिना प्रणिधान प्रवृत्ति, विघ्नजय आदि सिद्ध नही हो सकते है । इसलिए प्रार्थना प्रणिधान आवश्यक है ।
उ.
प्र.541 किस गुणस्थानक तक परमात्मा के समक्ष प्रार्थना की जा सकती है और क्यों ?
उ. छट्ठे गुणस्थानक तक प्रार्थना की जा सकती है, उसके पश्चात् नहीं । क्योंकि प्रार्थना में प्रशस्त राग की आवश्यकता होती है, जो कि सातवें अप्रमत गुणस्थानक में संभव नही है । यद्यपि साधक दसवें गुणस्थानक तक वीतराग अवस्था को प्राप्त नही कर सकता है, उसका सुक्ष्म राग तो उदित होता ही है । परन्तु यह राग अवस्था प्रार्थना करने में समर्थ नही होती है । अप्रमतादि गुणस्थानक में रहने वाले साधक की "मोक्षे भवे च सर्वत्र निःस्पृहो मुनि सत्तमः" मोक्ष और संसार आदि सबके प्रति निःस्पृहा होती है अर्थात् उसको संसार व मोक्ष दोनों के प्रति किसी प्रकार का राग भाव नही होता है, न ही उसको संसार की भौतिकता और मोक्ष की मिलकत
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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