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प्र.550 परलोक सम्बन्धी निदान से क्या तात्पर्य है ? उ. 'वेमाणियाइ सिद्धि.......परिहरियव्वं पयतेणं ।' परलोक के सुखों जैसे
वैमानिक देवों जैसी ऋद्धि-समृद्धि, इन्द्रत्व की प्राप्ति आदि हेतु, जो धर्म . .. किया जाता है उसे परलोक सम्बन्धी निदान कहते है ।
चै. महाभाष्य गाथा 858 प्र.551 काम-भोग सम्बन्धी निदान किसे कहते है ? उ. 'जो पुण सुकयसुधम्मो, पच्छा.....भोग नियाणं इयं भणियं ।' पूर्व
कृत सुधर्म के प्रभाव से भव-भव में काम-भोग रुपी फल प्राप्ति की कामना
करना, काम भोग सम्बन्धी निदान है। चै. महाभाष्य गाथा 859. : प्र.552 क्या निदान में धार्मिक क्रिया लक्ष्य को निर्धारित करके की जाती
उ. इहलोक व परलोक सम्बन्धित निदान में धार्मिक क्रिया लक्ष्य को निर्धारित
(निश्चित्त) करके ही की जाती है। जबकि काम-भोग सम्बन्धी निदान में धर्म-साधना आत्म कल्याण के उद्देश्य से प्रारंभ की जाती है, परन्तु बाद में कुनिमित्त के मिलने पर बुद्धि के भ्रष्ट हो जाने पर लक्ष्य से हटकर (भ्रष्ट होकर) धर्म साधना के फलस्वरुप काम-भोग सम्बन्धित फल की याचना की जाती है।
. चै. महाभाष्य गाथा 860 जैसे द्रौपदी का साध्वी सुकुमालिका के भव में कृत नियाणा । प्र.553 भगवती आराधना मूल के अनुसार निदानों के प्रकार बताइये ? उ. तीन प्रकार - 1. प्रशस्त 2. अप्रशस्त 3. भोगकृत । भ.आ./मू./1215 प्र.554 प्रशस्त निदान किसे कहते है ? उ. पौरुष, शारीरिक बल, वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम से दृढ़ परिणाम, ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
दशम प्रणिधान त्रिक
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