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उ. दोनों हाथों की खुली हथेलियों को मिलाकर (एकत्रित करके) उसमें फल
को स्थापित करके अंजली की आठों अंगुलियों और दोनों अंगुठों को परमात्मा के समक्ष थोड़ा सा झुकाने से जो मुद्रा (आकृति) निर्मित होती
है, उसे विवृत्त समर्पण मुद्रा कहते हैं । प्र.367 फल को कहाँ पर चढ़ाना चाहिए ? उ. वर्तमान काल में फल सिद्धशिला पर चढ़ाया जाता है ।
तात्त्विक दृष्टि से देखा जाय तो फल को साथिये (स्वस्तिक) पर चढ़ाना
उचित है। प्र368 फल स्वस्तिक पर चढ़ाना कैसे उचित/युक्ति संगत हैं ? उ. 'फल से फल मिले' इस पंक्ति के द्वारा आज तक हमने अनंत बार जिन
पूजा करके पूजा के फलस्वरुप भौतिक सुखों की ही कामना की, जिसके कारण अनादि काल से चार गति रुप इस संसार में भव भ्रमणा कर रहे हैं । फल पूजा के दरम्यान फल को स्वस्तिक पर चढ़ाकर चार गति का . अंत करके पंचम गति मोक्ष रुप फल को प्राप्त करने की परमात्मा के समक्ष - कामना करना है । चार गति के अंत की भावना स्वस्तिक पर फल चढाने
से ही सिद्ध एवं सार्थक हो सकती है। क्योंकि स्वस्तिक चार गति का सूचक
है । अतः साथिये पर फल चढ़ाना युक्ति संगत लगता है । पदार्थ - • केवलीगम्य है। 1369 पूर्व समय में फल को साथिये पर चढ़ाया जाता था, ऐसा प्रमाणित ____ कीजिए ? उ. 1. श्री जैन-धर्म-प्रसारक-सभा द्वारा वि.सं. 1886 में प्रकाशित 'श्राद्ध दिन - कृत्य नुं गुजराती भाषान्तर' नामक पुस्तक के पेज नं. 13 में लिखा
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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