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और पूजन बाह्य और आभ्यन्तर ऋद्धि प्रदायक होता है, इसलिए परमात्मा
को कल्पवृक्ष से उपमित किया गया है । प्र.437 क्या आरती और मंगल दीपक के पश्चात् चैत्यवंदन कर सकते है ? उ. हाँ, कर सकते है, क्योंकि भाव पूजा सदैव अग्र पूजा के पश्चात् ही होती
है। आरती और मंगल दीपक अग्र पूजा है और चैत्यवंदन भाव पूजा है। प्र.438 क्या चैत्यवंदन के बीच में प्रक्षाल, आरती आदि करने जा
सकते है ? उ. नहीं जा सकते है, क्योंकि हमनें तीसरी निसीहि का उच्चारण करके द्रव्य
पूजा (अंग व अग्र पूजा) का निषेध किया है, मात्र भाव पूजा करने का ही संकल्प किया है अर्थात् चैत्यवंदन करने की छुट रखी है। एक बार द्रव्य और भाव पूजा के पूर्ण होने के पश्चात् घर जाते समय यदि प्रक्षाल, आरति आदि हो रही हो तो पुनः द्रव्य पूजा कर सकते है
अन्यथा नहीं । प्र.439 भगवान के मंदिर में पास में ही गोखले में यदि दादा गुरूदेव या
किसी गुरू महाराजा की प्रतिमा या चरण पादुका हो तो क्या उनकी
पूजा, वंदना और आरती भगवान के सामने की जा सकती है ? उ. शास्त्रकार के अनुसार जिनमंदिर में परमात्मा के समक्ष दादा गुरूदेव की
प्रतिमाओं की पूजा, वंदना, आरती आदि विधि करने में किसी भी प्रकार का कोई दोष नहीं है । हाँ, पहले परमात्मा की वंदना, पूजा आदि होगी, उसके बाद में गुरूदेव की होगी । नवकार महामंत्र इसका प्रबल प्रमाण है। परमात्मा के सामने ही नमो आयरियाणं आदि पद बोले जाते है, जो
साधु पद के वाचक है। इस संबन्ध में कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यजी 「中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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