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सप्तम प्रमार्जना त्रिक प्र.484 प्रमार्जना का शाब्दिक अर्थ बताइये ? उ. प्रमार्जन = प्र + मार्जना ।
प्र = उपयोग, विवेक, मार्जना = पूंजना, साफ करना । प्र.485 प्रमार्जना त्रिक किसे कहते है ? उ. चैत्यवंदन करने से पूर्व जीवों की रक्षा के लिए प्रथम दृष्टि (आँख) से
देखकर, फिर उत्तरासन (दुपट्टे) के किनारे अथवा रजोहरण की दशियों
(फलियों) से भूमि को तीन बार पूंजना, प्रमार्जना त्रिक कहलाता है। प्र.486 मंदिर में श्रावक व श्रमण प्रमार्जना किससे करते है ? उ. श्रावक जिन मंदिर में प्रमार्जना खेस (उत्तरासन) से, पौषधव्रतधारी चर -
वले की फलियों से और श्रमण भगवंत रजोहरण की दशियों से भूमि
प्रमार्जन करते है। प्र.487 खेस कैसा होना चाहिए ? उ. खेस रेशमी तन्तुओं से निर्मित व किनारों से खुला चरवले की फलियों
की भाँति कोमल रेशे वाला होना चाहिए, ताकि भूमि प्रमार्जन के दौरान जीवों
की जयणा कर सकें। प्र.488 सतर संडासन (सत्रह प्रमार्जना) कैसे किये जाते है ? उ. (1-3) दाहिने (जिमणे) पाँव के कमर के नीचे के भाग से प्रारंभ कर
पाँव तक का पिछला सर्वभाग; पीछे की कमर का मध्य भाग; बायें पाँव के कमर के नीचे का पिछले पाँव तक सर्व भाग । कुल 3 प्रमार्जना । •(4-6) उपर्युक्त प्रकार से - आगे का दाहिना पाँव, मध्यभाग और बायां
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सप्तम प्रमार्जना त्रिक
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