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पर चलने की शक्ति प्राप्त हो, ऐसी परमात्मा से याचना की जाती है । प्र.516 मार्गानुसारी किसे कहते है ? उ. मार्ग का अनुसरण करने वाला अर्थात् जिनेश्वर परमात्मा प्ररुपित तात्त्विक
सत्य मार्ग का अनुसरण करने वाला मार्गानुसारी कहलाता है । जैसे - अपुनर्बंधक जीव, जिसने अभी तक सम्यक्त्व को प्राप्त नही किया है, सम्यक्त्व प्राप्ति से पूर्व जीव तीन करण में से प्रथम यथाप्रवृत्ति करण करने से इतना सरल परिणामी बन जाता है कि उसका चित्त भौतिक सुखों की उपादेयता से हटकर आध्यात्मिक मार्ग का अनुसरण करता है, तब वह
जीव मार्गानुसारी कहलाता है। प्र.517 मार्गानुसारी के 35 गुण कौन से है ? उ. 1. धर्म श्रवण 2. सत्संग 3. कदाग्रह त्याग 4. पाप त्याग 5. लज्जा 6.
निंदा त्याग 7. निंदा प्रवृत्ति त्याग 8. इन्द्रिय गुलामी त्याग 10. सौम्यता 11. बुद्धि के आठ गुण 12. न्याय सम्पन्न वैभव 13. उचित व्यय 14. उचित वेश 15. उचित विवाह 16. उचित घर 17. उचित देश 18. उचित भोजन 19. अजीर्ण में भोजन त्याग 20. अदेश काल चर्या त्याग 21. प्रसिद्ध देशाचार पालन 22. बलाबल विचार 23. माता-पिता का पूजन 24. पोष्य पोषण 25. अतिथि साधु सेवा 26. शिष्टाचार प्रशंसा 27. गुण-पक्षपात 28. परोपकार 29. त्रिवर्ग बाधा 30. ज्ञानवृद्ध चारित्र पात्र की सेवा 31.
लोकप्रियता 32. दीर्घ दृष्टि 33. विशेषज्ञता 34. कृतज्ञता 35. दया । प्र.518 उपरोक्त 35 गुणों को कितने भागों में विभक्त किया जा सकता है? उ. चार भागों में - 1. नींव के गुण 2. उचित गुण 3. करणीय गुण 4. शिखर
के गुण । ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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