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षष्ट दिशा त्रिक प्र.482 दिशा त्रिक किसे कहते है ? उ. प्रभु पुजन, वंदन, दर्शन करते समय दायीं, बायीं और पृष्ठ (पीछे) दिशा
में देखने का त्याग करके केवल परमात्मा के मुख मंडल पर दृष्टि स्थापित
करना, दिशा त्रिक कहलाता है। प्र.483 अन्य तीन दिशाओं ( दायीं, बायीं व पृष्ठ) में देखने का त्याग क्यों
कहा ? चैत्यवंदन करते समय चंचल मन को बाह्य चेष्टाओं से हटाकर मात्र परमात्म-स्वरुप में स्थिर करने के हेतु से कहा है । दिशा त्रिक त्याग से मन एकाग्र बनता है, परमात्मा भक्ति में मन जुड़ता है और कर्मों की निर्जरा होती है।
उ
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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