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. अनामिका अंगुली से ही की जाती है। . .
शास्त्रों में कहा हैं - पूज्यजनों की पूजा अनामिका से होती है । उस आधार पर दादा गुरुदेव हमारे पूज्य होने से उनकी पूजा अनामिका अंगुली से की जाती है। - आचार्य महाराज को तीर्थंकर तुल्य उपमा देने के साथ उनकी चंदनादि सुगंधित द्रव्य से पूजा करने का विधान आचारांग आदि आगमों में उपलब्ध है।
देखे आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध की यह 333वीं गाथा - तित्थगराण भगवओ, पवयव पावयणि अइसअड्ढीणं ।
अभिगमण णमण दरिसण कित्तण संपूअणा थुणणा 1333॥ टीका - तीर्थकृतां भगवतां प्रवचनस्य द्वादशांगस्य गणिपिटकस्य तथा प्रावचनिनां आचार्यादीनां युगप्रधानानां तथातिशयिना - मृद्धिमतां केवलिमन :पर्यायावधिमच्चतुर्दशपूर्वविदां तथामर्षोषध्यादिप्राप्तऋद्वीनां यदभिगमनं गत्वा च दर्शनं तथा गुणोत्कीर्तनं संपूजनं गन्धादिना स्तोत्रैः स्तवनमित्यादिका दर्शनभावना, अनया हि दर्शनभावनानवरतं भाव्यमानया दर्शन-विशुद्धिर्भवतीति ॥ भावार्थ - तीर्थंकर भगवंत, आचार्य भगवंत, युगप्रधान, केवली, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, चतुर्दश पूर्वधर, आम!षधि ऋद्धि वाले आचार्य भगवंतों के सामने जाकर उनके दर्शन करना, गुण कीर्तन करना, सुगंधी द्रव्यों से पूजन करना, स्तोत्र आदि से स्तुति करना, यह सब दर्शन भावना की क्रिया है । इस भावना का निरंतर सेवन करने से दर्शन
विशुद्धि होती है। +++++++++中中中中中中中中中中中中+++++++++++++++++++++
चतुर्थ पूजा त्रिक
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