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महाराज योगशास्त्र के तीसरे प्रकाश में फरमाते है -
ततो गुरूणामभ्यर्णे, प्रतिपत्तिपुरः सरम् ।
विदधीत विशुद्धात्मा, प्रत्याख्यान-प्रकाशनम् ॥ 125 ॥ व्याख्या- ततोनन्तर गुरूणां - धर्माचार्याणां देववंदनार्थमागतानां स्नात्रादिदर्शने, धर्म क्रियार्थ तत्रैव स्थितानां अभ्युत्थानं, तदालोके अभियान च तदागमे । शिरस्यंजलिसंश्लेषः स्वयमासनढौकनम् ॥ 125 ||
आसनाभिग्रहो भक्त्या, वंदना पर्युपासनम् । तद्यानेनुगमश्चेति, प्रतिपत्तिरियं गुरोः ॥ 127 ॥ परमात्मा के मंदिर में गुरू भगवंतों के आगमन पर उनकी भक्ति वहाँ स्थित श्रावकों द्वारा कैसे करनी चाहिए, इसका खुलासा आचार्य भगवंत फरमा रहे है । इन गाथाओं में स्पष्ट लिखा है कि जिन मंदिर में गुरू महाराज के आने पर उनका आसन आदि ग्रहण कर विधिवत् वंदना उपासना करनी चाहिए।
तपागच्छ के आचार्य विजय लब्धिसूरि ने अपने प्रश्नोत्तर ग्रन्थ लब्धि प्रश्न के प्रथम खण्ड के 258 वें प्रश्नोत्तर में इसी प्रश्न का सटीक समाधान प्रस्तुत किया है। शंका - जिनालयमां जिनमूर्तिओनी पासे गुरूमूर्तिओ पधराववामां आवे छे. तो ते गुरूमूर्तिओने अब्भुट्ठियापूर्वक वंदन थइ शके ? समाधान - जिनमूर्तिओने वंदन कर्या पछी गुरूमूर्तिओ ने वंदन करवामां वांधो नथी । कारण के देवतत्त्व पछी गुरूतत्त्व छ । आथी गुरूमूर्तिओने वंदन करता प्रभुजीनी दृष्टि पडे तो पण हरकत जेवू नथी । केम के जिनेश्वर देवोअ, देवतत्त्व पछी बीजा नंबरे गुरूतत्त्व मुक्यूं छे आथी बीजा नंबरना
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चतुर्थ पूजा त्रिक
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