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4. 'संपइराया रहग्गओ विविहफले खज्जग भुज्जगे अ कवडग
वत्थमाइ उक्किरणे करेइ' इस सूत्र में 'खज्जग भुज्जगे' शब्द का प्रयोग खाद्य पदार्थ और पके हुए अन्न से नैवेध पूजा करने के लिए किया है ।
5. महिनिशीथ सूत्र के तीसरे अध्ययन में " अरिहंताणं भगवंताणं गंध मल्ल पईव संमज्जणो वलेपण वित्थिण्ण बलिं वत्थ धूवाइ एहिं पूजा सक्कारेर्हि पड़ दिणमब्भच्चणं पकुत्वाणा तित्थुप्पणं (ई) करा मोति ।" इस सूत्र में 'वित्थिण्ण बलि' शब्द पक्व अनाज से नैवेद्य पूजा करने हेतु प्रयुक्त हुआ ।
प्र 359 अष्टप्रकारी पूजा में अन्य धान्य की अपेक्षा अक्षत को ही स्थान क्यों दिया गया ?
उ. . अक्षत अन्य धान्यं की अपेक्षा अधिक शुद्ध, उत्तम व सात्विक है, क्योंकि अक्षत में शुद्ध पारा नामक धातु का अंश होता है । यह पारा साधना को सिद्ध करने का सबसे सरल उपाय है । इसलिए तांत्रिक विद्या आदि में भी इसका उपयोग अनिवार्य रुप से होता है ।
प्र 360 फिर साधना की सिद्धि में पारे का ही उपयोग क्यों नहीं करते है ? उ. पारे को शुद्ध करने में लगभग दो वर्ष तक का समय लगता है, इस पारे लगभग 18 संस्कारों से पसार करना पडता है तब कहीं जाकर पारा शुद्ध बनता है, जबकि अक्षत में पारा शुद्ध रुप में कुछ अंश में पाया जाता है। प्र.361 नैवेद्य पूजा कौनसी मुद्रा में की जाती हैं ?
उ. संपुट मुद्रा
में I
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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