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युक्त होती है। इन सबसे बचने के लिए जिनपूजा - सत्कार का द्रव्य स्व गृहस्थ के लिये अनन्य उपाय है ।
प्र. 301 जीवन भर के लिए सर्व पाप व्यापारों का त्याग करने वाले साधु के लिए द्रव्य स्तव का उपदेश देना कैसे उचित है ?
द्रव्य स्तव करना सदोष नही है, क्योंकि द्रव्य स्तव में लगते हुए सूक्ष्म हिंसादि दोष की अपेक्षा अन्य इन्द्रिय विषयों के निमित कृषि व्यापार आदि बड़े आरम्भमय हिंसादि दोष युक्त प्रवृत्ति से, द्रव्य स्तव काल में निवृत्ति होती है उस समय महादोष वाली प्रवृत्ति रुक जाती है, जीव घोर कर्म बन्धुन की प्रक्रिया से बच जाता है । इस अपेक्षा से उचित हैं । प्र. 302 तब भी हिंसा दोष युक्त द्रव्य समूचा निष्पाप तो नहीं है और साधु उसे करवाता है तो अक्सर अमुक दोष की निवृत्ति के साथ अन्य दोष में प्रवृत्ति करवाना तो हुआ न ?
उ.
उ. नहीं, गृहस्थ को पूजादि द्वारा महादोष के निवृत्ति का लाभ मिले इतना ही उद्देश्य उपदेश कर्ता का है न कि पुष्पादि को क्लेश मिले । यद्यपि गृहस्थ की वहाँ कुछ अंश में हिंसा की प्रवृत्ति रहती है, लेकिन उसे उस समय दरम्यान महादोष से निवृत्ति का बड़ा लाभ मिलता है । ऐसी निवृत्ति हेतु गृहस्थ के लिए द्रव्य स्तव जैसा कोई अन्य उपाय नहीं है।
प्र. 303 द्रव्य स्तव की निर्दोषता को 'सर्पभय-पूत्राकर्षण' दृष्टान्त से सिद्ध कीजिए ।
उ. सावद्य द्रव्यस्तव को भी उपदेश द्वारा करवाना निर्दोष है इस में 'नागभय सुतगर्ताकर्षण' अर्थात् सर्प के भय से पूत्र को खड्डे में से घसीट लेने
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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