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उ.
पूजा की अपेक्षा भाव पूजा उत्कृष्ट होने के कारण उच्चत्तम (उत्कृष्ट)
फल प्रदान करती है। प्र.296 गृहस्थ हेतु द्रव्य पूजा का विधान क्यों हैं ?
गृहस्थ द्रव्य के आधिपत्य में रहता हैं । उस द्रव्य के प्रति उसके आसक्ति के भाव कम हो, अनासक्त भाव जाग्रत हो, त्याग की भावना की उत्तरोत्तर वृद्धि हो, इसी अपेक्षा से गृहस्थ हेतु द्रव्य पूजा का विधान
किया गया है। प्र.297 चतुर्विध पूजा में कौनसी पूजा प्रधान व विशेष फल प्रदात्री होती
है ? उत्तरोत्तर प्रधानता क्रम बताइये । ___ 'भावपूजाया : प्रधानत्वात् तस्याश्च प्रतिपत्तिरूपत्वात्' । प्रतिपति
पूजा विशेष फल प्रदात्री होती है। उत्तरोत्तर क्रम - पुष्प पूजा< आमिष
पूजा < स्तोत्र पूजा < प्रतिपति पूजा । ललित विस्तरा पे. 45 प्र.298 साधु भगवंत जैसे गोचरी (आहार, भिक्षा) वहोर कर लाते है क्या
वैसे ही आमिष पूजा की सामग्री वहोरकर, उससे ( उस पूजा द्रव्य . . से) परमात्मा की आमिष पूजा कर सकते है ? और क्यों ? उ. नहीं कर सकतें है, क्योंकि साधु-साध्वीजी भगवंत मात्र धर्म की साधना
में उपयोगी भिक्षा, वस्त्र, पात्र, रजोहरण आदि आवश्यक सामग्री ही - वहोरकर ला सकते है, अन्य नहीं । अन्य सामग्री को वहोर कर लाने
पर उनके परिग्रह विरमण व्रत का खंडन होता है । व्रत खण्डन कर्मबंधन .. का निमित्त होता है।
आमिष पूजा के अन्तर्गत पुज्य पदार्थ को परमात्मा के सम्मुख न रखकर
उसे परमात्मा के श्री चरणों में अर्पण करना होता है। अर्पण सदैव स्वद्रव्य ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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