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किसी के हृदय को आघात (ठेस) लगे ऐसे कट्ट वचन कभी नही बोलने चाहिए।
प्र. 212 साधु-साध्वीजी भगवंत तथा पोषधव्रतधारी श्रावक व श्राविका प्रथम व द्वितीय निसीहि किसके त्याग हेतु कहते है ?
मुनिचर्या रुप- स्थंडिल, गौचरी, प्रतिलेखना तथा पौषध व्रतधारी पौषधच्चर्या! (क्रिया) के त्याग हेतु प्रथम निसीहि और द्वितीय निसीहि रंग मंडप में जिनमंदिर के निरवद्य उपदेश योग्य जैसे पानी का कम से कम उपयोग करना, ईर्यासमिति का पालन करते हुए चलना, व्यवस्था के त्याग हेतु कहते है ।
उ.
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प्रथम निसीहि त्रिक
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