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के लिए शुद्ध करने वाला स्नान, भाव स्नान कहलाता है। प्र.282 जिन पूजा के लिए द्रव्य स्नान क्यों आवश्यक हैं ? उ. भाव शुद्धि निमित्तत्वा तथानुभव सिद्धितः ।
कथञ्चिदोष भावेऽपि, तदन्य गुण भावतः ।। द्रव्य स्नान द्वारा होने वाली कायिक शुद्धि, भाव शुद्धि (मानसिक शुद्धि) का कारण होती है । स्वस्थ मन प्रभु भक्ति में सद्भाव उत्पन्न करता है और यह सद्भाव सम्यग्दर्शन से लेकर हमें सर्व विरति और केवलज्ञान
प्रदान करवाता है। प्र.283 पूजा में स्थावर आदि जीवों की हिंसा होने के बावजूद भी जिन
पूजा को निष्पाप निर्दोष क्यों कहा है ? उ. __पुआए कायवहो, पडिकुट्ठो सोउ किन्तु जिण पूआ ।
सम्मत्त सुद्धिहेउ त्ति, भावणीआ उ निरवज्जा । जिन पूजा में स्थावर आदि जीवों की हिंसा होती है, उतने अंश में वह विरुद्ध है, परन्तु जिन पूजा समकित (सम्यक्त्व) शुद्धि का कारण होने से निष्पाप निर्दोष समझी जाती है। यद्यपि 'जल स्नान' आदि में छ: काय जीवों की हिंसा रुप विराधना तो होती है, फिर भी 'कुएं' के उदाहरण से पंचाशक प्र० गाथा 42 के अनुसार जैसे कुआं खोदने पर भूख, प्यास, थकावट का अहसास होता है, कीचड़, मिट्टी से शरीर लिप्त हो जाता है, कीडे-मकोड़े आदि जीवों की हिंसा भी होती है, परन्तु पानी निकलते ही भुख, प्यास, थकावट आदि मिट जाती है, मिट्टी, कीचड़ व धुल से सना शरीर व वस्त्र उस पानी
से स्वच्छ हो जाते है । वह पानी स्व के साथ पर की प्यास बुझाने में ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
चतुर्थ पूजा त्रिक
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