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"चैत्य सुप्रशस्त मनोहेतुत्वाद" मन को सुप्रशस्त, सुंदर, शांत एवं पवित्र
बनाने वाला चैत्य कहलाता है। राजप्रश्नीय सूत्र मलयगिरि कृत टीका प्र.166 जिन प्रतिमा चैत्य क्यों कहलाती है ? ___ 'चित्तम् अन्तःकरणं तस्य भावः कर्म वा, प्रतिमा लक्षणम् अर्हच्चैत्यम् ।'
अरिहन्त परमात्मा की प्रतिमा चित्त में उत्तम समाधि भाव उत्पन्न करती है इसलिए साधना में साध्य का उपचार करके उसे चैत्य कहा गया है। 'चित्तस्य भावाः कर्माणि' जिन प्रतिमा धातु, रत्नों आदि से निर्मित होने के बावजूद भाव व क्रिया से चित्त में ये साक्षात् तीर्थंकर परमात्मा ही है, ऐसी विचार धारा उत्पन्न करवाने के कारण जिन प्रतिमा चैत्य
कहलाती है। प्र.167 'वंदन' शब्द का क्या अर्थ हैं ? उ. वंदन यानि नमन, नमस्कार, प्रणाम आदि है। । । प्र.168 चैत्य (जिन प्रतिमा) को वंदना क्यों की जाती है ? उ. 'अहिगारिणा उ काले कायव्वा वंदणा जिणाईणं । दसण सुद्धि निमित्त, कमाक्खय मिच्छमाणेण ॥
चैत्यवंदन महाभाष्य गाथा 10 जिन प्रतिमा (चैत्य) को वंदन आदि करने से चित्त में शुभ की वृद्धि होती है । शुभ अध्यवसाय (भाव) सम्यग्दर्शन की शुद्धि और कर्म क्षय
का निमित्त होता है इसलिए जिन प्रतिमा को वंदन किया जाता है। प्र.169 चैत्यों के प्रकार बताते हुए नामोल्लेख कीजिए। उ. चैत्य पांच प्रकार के होते है - 1. भक्ति चैत्य 2. मंगल चैत्य 3. निश्राकृत
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चैत्य का अर्थ व प्रकार
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