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श्रामविलाम] उक्त तीनोंकी युक्तियुक्त संगति, किसी भी धर्ममार्गके निर्णय करने के लिये इन चारोंका मेल आवश्यक है। इन चारोंकी संगतिद्वारा जो निर्णय होगा वह निर्दोप निर्णय कहा जायगा।
इसी लिये गीताके १८ वें अध्यायमे सत्त्व, रज व तमभेद से बुद्धि तीन प्रकार की निर्णय की गई है यथाः
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये । वन्धं मोदं च या वेत्ति बुद्धिःसा पार्थ सात्त्वकी । यया धर्ममधर्म व कार्य चाकार्यमेव च । अयथावत्मजानाति बुद्धिःसा पार्थ राजस। ॥ अधर्म धर्ममिति या मन्यते तमसावृता । सर्वार्थाविपरोतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी ॥
श्लो० ३०, ३१, ३२ अर्थ:-हे पार्थ । जिस बुद्धिद्वारा प्रवृत्ति-निवृत्ति, कर्तव्यअकर्तव्य, मय-अभय तथा बन्ध-मोक्ष यथावत् जाना जाय वह बुद्धि सात्त्विकी है। जिस बुद्धिद्वारा धर्म-अधर्म तथा कर्तव्यअकर्तव्य यथावत् न जाना जाय, वह रजोगुणो बुद्धि है । तथा तमोगुण करके श्रावृत जिस बुद्धिद्वारा अधर्मको ही धर्म मान लिया जाय और सभी अोंको विपरीत जाना जाय, वह तामसी है।
धर्तमानमें मत-मतान्तरोंका वादविवाद भी इसी कारण से है कि प्राशयके यथार्य समझे विना केवल शब्दों व पंक्तियाँ की ही चातानी की जाती है। विषय यद्यपि गहन है तथापि