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ब्रह्माद्वैतवाद का खण्डन ] तृतीय भाग
[ २७ नाऽविद्याऽस्येत्यविद्यायामेव स्थित्वा प्रकल्पते । ब्रह्माधारा त्वविद्येयं न कथंचन युज्यते ॥२॥ यतोऽनुभवतोऽविद्या ब्रह्मास्मीत्यनुभूतिमत् । अतो मानोत्थविज्ञानध्वस्ता साप्यन्यथात्मता ॥३॥ ब्रह्मण्यविदिते बाधान्नाविद्येत्युपपद्यते । नितरां चापि विज्ञाते मषा धीस्त्यिबाधिता ॥४॥ अविद्यावान विद्यां तां न निरूपयितुं क्षमः। वस्तुवृत्तमतोऽपेक्ष्य' 'नाविद्येति निरूप्यते ॥५॥ वस्तुनोन्यत्र मानानां व्यापतिर्न हि युज्यते । अविद्या च न वस्त्विष्टं मानाघाताऽसहिष्णुतः ॥६॥ अविद्याया अविद्यात्वे इदमेव च लक्षणम् । मानाघातासहिष्णुत्वमसाधारणमिष्यते10" ॥७॥
श्लोकार्थ-"इसमें अविद्या नहीं है" इस प्रकार से अविद्या में ही स्थित होकर कल्पना करते हैं तब तो यह अविद्या ब्रह्म की आधारभूत है यह कथन भी कथमपि युक्त नहीं हो सकता है ॥२॥
__ श्लोकार्थ - क्योंकि अनुभव से "मैं अविद्यावान् पुरुष ब्रह्म हूँ" इस प्रकार का वह ब्रह्मानुभूतिमान्–विद्यावान् है अतएव वह अविद्या प्रमाण से उत्पन्न विज्ञान से ध्वस्त-नष्ट हो जाती है। अन्यथा-यदि नष्ट हुई नहीं मानों तब तो वह अविद्या ही ब्रह्म रूप को प्राप्त हो जाती है ॥३॥
श्लोकार्थ-एवं ब्रह्मा के नहीं जानने पर बाधा आने से यह अविद्या है ऐसा नहीं कह सकते हैं अर्थात् अविद्या में स्वसंवेदन ज्ञान से बाधा के संभव होने से अविद्या भी विद्या ही है, तथा उस ब्रह्मा को अच्छी तरह से जान लेने पर जो ज्ञान हुआ वह अबाधित है वह ज्ञान असत्य नहीं हो सकता है ॥४॥
श्लोकार्थ-अविद्यावान् मनुष्य उस अविद्या का निरूपण करने में समर्थ नहीं है। इसलिये वस्तुभूत की अपेक्षा करके "अविद्या है" ऐसा निरूपण नहीं किया जाता है अतः अविद्या अवस्तुभूत है ।।५।।
श्लोकार्थ-वस्तुभूत-ब्रह्मा से अन्यत्र-अवस्तु में प्रमाणों का व्यापार युक्त नहीं है एवं अविद्या वस्तुभूत इष्ट नहीं है क्योंकि वह प्रमाण द्वारा विहित परीक्षा को सहन करने में समर्थ नहीं है ॥६॥
श्लोकार्थ-अविद्या को अविद्यारूप से जो विधायक है वही इस अविद्या का लक्षण है, जो कि प्रमाण के द्वारा की गई परीक्षा को सहन न कर सकना है एवं यह असाधारण लक्षण है ।।७।।
1 अनुभवमाश्रित्य । ब्या० प्र०। 2 सा अविद्याऽन्यथास्वरूपेण । दि० प्र०। 3 कुतः । ब्या० प्र०। 4 ब्रह्मणा विदितत्वाबाधासंभवो विद्यायाम् । दि० प्र०15द्वितीयो हेतुः। आशंक्य । दि० प्र०। 6 कुतः । प्रमाणेन । दि. प्र० । 7 प्रमाणेनाघात: प्रमाणेन प्रवृत्तिः तदनपेक्षत्वात् प्रमाणप्रवृत्ति न सहते इति भावः । दि० प्र० । ४ अविद्यास्वरूपे । ब्रह्मणः । दि० प्र०। 9 मानाघातासहिष्णतासहिष्णत्वमसाधारणमिष्यते । इति पा०। दि० प्र० । 10 यतः । ब्या० प्र०।
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