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क्षणिक एकांत का निराकरण । तृतीय भाग
[ १५६ तथाऽदर्शनमहेतुरत्रव' विचारात् । न हि यत्रैव विवादस्तदेव नियमहेतुरिति युक्तं वक्तुमविचारकत्वप्रसङ्गात् ।
[ तन्तुसामान्यमातानवितानादिरूपेण तन्तुविशेषश्च परस्परनिरपेक्षोः उभौ पटकार्य कर्तुं न शक्नुतः । ]
यथादर्शनं नियमकल्पनायां हेतावपि' कथंचिदाहितविशेषतन्तूनां पटस्वभावप्रतिलम्भोपलम्भात् 'तदन्यतरविधिप्रतिषेधनियमनिमित्तात्ययात् । प्रतीतेरलमपलापेन । न हि तन्तुतद्विशेषयोरन्यतरस्य' विधौ निषेधे च नियमनिमित्तमस्ति । न हि तन्तव 'एवातानादि
भावार्थ-सोगत कहता है कि पूर्व के क्षण कारणरूप हैं वे कार्य क्षणों को स्पर्श न करते हुए ही उत्तर कार्य क्षण को उत्पन्न करते है क्योंकि इसी प्रकार से लोक में देखा जाता है, तब उत्तर में स्याद्वादी कहते हैं कि ऐसा मानने पर तो सभी अहेतुक और उपादान रहित हो गये पुनः तन्तु आदिकों से घटादि भी उत्पन्न हो जाये क्या बाधा है ? क्योंकि उपादान का नियम दोनों में नहीं है । भाई ! हमारा और आपका इस उपादान सहित अथवा उपादान रहित में हो तो विरोध है।
बौद्ध-जिस अदर्शन में ही विवाद है वही अदर्शन नियम के हेतु है।
जैन - ऐसा कहना भी युक्त नहीं है क्योंकि अविचारकपने का प्रसंग आ जायेगा। [ तंतु सामान्य और आतान वितानादि रूप तंतु विशेष ये दोनों परस्पर निरपेक्ष होकर वस्त्र कार्य नहीं
कर सकते हैं। ] यथा दर्शन के नियम की कल्पना में हेतु रूप स्वीकार करने पर भी कथंचित् आतानादि प्रकार से विशेषता को प्राप्त हुये तंतु समूह में पटस्वभाव की प्राप्ति उपलब्ध हो रही है एवं उन तंतु सामान्य और तंतु विशेष में किसी एक की विधि या प्रतिषेध का नियम करने में कोई निमित्त नहीं है। इसलिये प्रतीति का अपलाप करने से बस होवे।
तंतु सामान्य और तंतु विशेष में से किसी एक की विधि और किसी एक का निषेध करने में कोई भी नियम कारण नहीं है । आतान वितान आदि विशेष से निरपेक्ष ही तंतु समूह वस्त्र स्वभाव को प्राप्त होते हुये नहीं देखे जाते हैं। कि जिससे तंतु मात्र सामान्य की ही विधि का नियम, अथवा तंतु विशेष का निषेध का नियम हो सके । अर्थात् नहीं हो सकता।
तंतु सामान्य से निरपेक्ष विशेष ही वस्त्ररूप होते हुये भी उपलब्ध नहीं हो रहे हैं कि जिससे विशेष विधि का नियम अथवा तंतु सामान्य का प्रतिषेध किया जा सके । अर्थात् नहीं किया जा
1 कार्यस्य । दि० प्र० । 2 अप्रैवोपादाने आवयोविप्रतिपत्रिस्तदेव दृष्टान्तकारणमिति कथयितुं युक्तं न हि वक्तुं भवति चेत्तदा अविचारकत्वं प्रसजति यतः । दि० प्र०। 3 तस्माद्यथादर्शनं नियमकल्पनायां सत्यां हेतावप्यङ्गीकर्तव्या तदलं प्रतीत्यपलापेने ति संबन्धः । ब्या० प्र०। 4 प्राप्ति । दि० प्र०। 5 सामान्यस्य विधी विशेषस्य निषेधे विशेषस्य विधौ सामान्यस्य निषेधे वा। ब्या०प्र०। 6 अतिक्रमात् । दि०प्र०। 7 आतानवितान । दि० प्र०। 8 वा । इति पा० । दि० प्र०। 9 एवातानवितानादि । इति पा० । दि० प्र०।
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