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जीव की भव्यअभव्यव्यवस्था ] तृतीय भाग
। ५११ [ भव्यत्वाभव्यत्वयोर्लक्षणं ] शुद्धिस्तावज्जीवानां भव्यत्वं केषांचित्सम्यग्दर्शनादियोगान्निश्चीयते । अशुद्धिरभव्यत्वं तद्वैपरीत्यात् सर्वदा प्रवर्तनादवगम्यते' छद्मस्थैः, प्रत्यक्षतश्चातीन्द्रियार्थशिभिः । इति भव्येतरस्वभावी शुद्धयशुद्धी जीवानां तेषां सामर्थ्यासामर्थ्य शक्त्यशक्ती' इति यावत् । ते माषादिपाक्यापरशक्तिवत्' संभाव्येते सुनिश्चितासंभवबाधकप्रमाणत्वात् । तत्र शुद्धर्व्यक्तिः सादिस्तदभिव्यञ्जकसम्यग्दर्शनादीनां सादित्वात् । 'एतेनानादिः सदाशिवस्य शुद्धिरिति प्रत्युक्तं प्रमाणाभावाद् दृष्टातिक्रमादिष्ट विरोधाच्च । अशुद्धेः पुनरभव्यत्वलक्षणाया व्यक्तिरनादिस्तदभिव्यञ्जकमिथ्यादर्शनादिसंततेरनादित्वात् । पर्यायापेक्षयापि शक्तेरनादित्वमिति
[ भव्यत्व और अभव्यत्व का लक्षण ] जीवों के भव्यत्व को शुद्धि कहते हैं वह किन्हीं-किन्हीं जीवों के सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र आदि के योग से निश्चित की जाती है। जीवों के अभव्यत्व को अशुद्धि कहते हैं। वह सर्वदा प्रवर्त्तमान, मिथ्यादर्शनादि के योग से छद्मस्थ जीवों के द्वारा जानी जाती हैं तथा अतीन्द्रियार्थदर्शी सर्वज्ञ के द्वारा ये प्रत्यक्ष से जानी जाती हैं।
इस प्रकार से उन जीवों के भव्य और अभव्य स्वभाव को शुद्धि और अशद्धि कहते हैं वे उन जीवों की सामर्थ्य, असामर्थ्य रूप हैं। उन्हें शक्ति और अशक्ति कहते हैं। वे शुद्धि, अशुद्धि उड़द की पाक्य-पकने योग्य एवं नहीं पकने योग्य शक्ति के समान सम्भावित होती हैं। क्योंकि वे सुनिश्चित असम्भवबाधक प्रमाण से जानी जाती हैं। उसमें शुद्धि की व्यक्ति-प्रगटता तो सादि है क्योंकि उसके अभिव्यञ्जक सम्यग्दर्शन आदि सादि हैं "जिनका कहना है कि सदाशिव की शुद्धि अनादि है" इसी उपर्युक्त कथन से उसका निराकरण कर दिया गया है क्योंकि उसको समझने में प्रमाण का अभाव है, दृष्ट का अतिक्रम है एवं इष्ट का भी विरोध है ।
"अशुद्धि को अभव्यत्व लक्षण व्यक्ति अनादि है क्योंकि उसके व्यञ्जक मिथ्यादर्शनादिकों की परम्परा अनादि है।"
शंका-पर्याय की अपेक्षा से भो शुद्धि और अशुद्धि रूप शक्ति अनादि है। समाधान -ऐसा नहीं कहना क्योंकि द्रव्य की अपेक्षा से ही वह अनादिपना सिद्ध है। इसलिये
1 प्रवचनाद् । इति पा० । ब्या० प्र०, दि० प्र० । 2 हेतोः । दि० प्र० । 3 योग्यतायोग्यते । दि० प्र० । 4 अपाक्य । दि० प्र० । शद्धयशद्धयोर्मध्ये । ब्या० प्र० । 5 शुद्धि । ब्या० प्र०। 6 जीवानां शुद्धयशूद्धी पक्षः ते शक्तयशक्ती भवत इति साध्यो धर्मः सुनिश्चितासंभवबाधकप्रमाणत्वात् माषादिपाक्यापाक्यशक्तिवत् । दि० प्र० । 7 शुद्धिव्यक्तेः, सादित्वसमर्थनेन । ब्या०प्र०। 8 विशुद्धे रनादित्वस्य । ब्या० प्र०। 9 अशुद्धिप्रकाशक । दि० प्र० ।
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