Book Title: Ashtsahastri Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 670
________________ तृतीय भाग इतीयमाप्तमीमांसा विहिता 'हितमिच्छताम् । 'सम्यग्मिथ्योपदेशार्थविशेषप्रतिपत्तये ॥११४॥ [ जैनाचार्या अस्य ग्रन्थस्य फलं प्रकाशयति । ] इति देवागमाख्ये स्वोक्तपरिच्छेदे शास्त्रे ( स्वेनोक्ताः परिच्छेदा दश यस्मिंस्तत् स्वोक्तपरिच्छेदमिति ग्राह्यं तत्र ) विहितेयमाप्तमीमांसा 'सर्वज्ञविशेषपरीक्षा हितमिच्छतां निःश्रेयसकामिनां मुख्यतो निःश्रेयसस्यैव हितत्वात् तत्कारणत्वेन रत्नत्रयस्य च हितत्वघटनात्, ' तदिच्छतामेव न पुनस्तदनिच्छतामभव्याना, 'तदनुपयोगात् । तत्त्वेतरपरीक्षां प्रति भव्यानामेव नियताधिकृतिः, तथा मोक्षकारणानुष्ठानात् मोक्षप्राप्त्युपपत्तेः । सम्यग्मिथ्योपदेशार्थ ग्रन्थ का फल ] हित के इच्छुक भव्य जनों को, सत्य असत्य बताने को । सम्यक् मिथ्या उपदेशों के, अर्थ विशेष समझने को ॥ इस प्रकार से रची गई यह, आप्त समीक्षा को करती । कुशल "आप्तमीमांसा" स्तुति यह, “सम्यक् ज्ञानमती" करती ॥११४॥ कारिकार्थ - हित प्राप्ति की इच्छा करने वाले भव्य जीवों को सम्यग्उपदेश और मिथ्या उपदेश के अर्थ विशेष का ज्ञान कराने के लिये यह आप्त मीमांसा नाम की स्तुति रचना मैंने (श्री समंतभद्र स्वामी ने ) बनाई है ।। ११४।। [ ५६१ [ जैनाचार्य इस ग्रंथ के फल को बतलाते हैं । ] 'इति' इस देवागम नाम के अपने द्वारा रचित परिच्छेद शास्त्र में (जिसमें अपने द्वारा कहे गये हैं दस परिच्छेद ऐसे इस स्वोक्त परिच्छेद शास्त्र में ) हित की इच्छा करने वाले निःश्रेयस मोक्ष के अभिलाषी भव्य जीवों के लिये यह आप्त मीमांसा - सर्वज्ञ विशेष की परीक्षा की गई है क्योंकि मुख्य रूप से तो निःश्रेयस - मोक्ष ही हित रूप है एवं उस मोक्ष का कारण होने से रत्नत्रय भी हित रूप घटित हो जाता है । उस मोक्ष एवं मोक्ष के कारणों की इच्छा करने वाले भव्य जीवों के लिये ही यह है न कि मोक्ष की इच्छा न करने वाले अभव्यों के लिये है क्योंकि उन अभव्यों के लिये वह कुछ भी उपयोगी नहीं है कारण कि तत्त्व और अतत्त्व की परीक्षा के प्रति भव्यों को ही निश्चित अधिकार है । भव्यत्व के होने पर ही मोक्ष के कारणों का अनुष्ठान करने से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है । सम्यग् और मिथ्या उपदेश के अर्थ विशेष की जानकारी के लिये यह आप्त मीमांसा युक्त ही है । Jain Education International 1 मोक्ष तत् कारणञ्च । व्या०प्र० । 2 ताद्धिः । व्या०प्र० । 3 अवयवार्थं साकूतं विवृण्वन्तिः । व्या०प्र० । 4 अर्हन्नेव । व्या० प्र० । 5 रहितम् । दि० प्र० । 6 अभव्यानां हितग्रहणेनाधिकारत् । दि० प्र० । 7 अधिकारः । दि० प्र० । 8 एतदेव भावयति । ब्या० प्र० । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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