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स्याद्वाद की व्यवस्था
तृतीय भाग
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सारांश
नयों का लक्षण-अविरोध रूप से स्याद्वाद रूप आगम प्रमाण के द्वारा विषय किये गये पदार्थ विशेष का जो व्यञ्जक है वह नय कहलाता है। यथा-"नीयते साध्यते गम्योऽर्थोऽनेनेति नयोहेतु: इति" अर्थात् जिसके द्वारा जानने योग्य अर्थ का ज्ञान होता है उसे नय कहते हैं। वही हेतु है । साध्य के साथ अविनाभावी हेतु ही अपने साध्य का गमक होता है। हेतु में तीन या पाँच लक्षण होने पर भी वह गमक नहीं है। किन्तु अन्यथानुपपत्ति मात्र एक लक्षण के होने से गमक ही है । इस एक लक्षण में ही साधन की सामर्थ्य परिसमाप्त है । क्योंकि यह हेत्वाभास के भेद-प्रभेद रूप सभी विपक्षों से व्यावृत्ति रूप है । अत: स्याद्वाद इत्यादि वाक्य से अनुमित अनेकान्तात्मक अर्थ तत्त्व ही प्रकाशित किया जाता है। वही स्याद्वाद से प्रविभक्त अर्थ है, क्योंकि प्रधान है, एवं सर्वव्यापी हैं । उसके विशेष नित्य, अनित्य आदि पृथक-पृथक हैं उन्ही का प्रतिपादन करने वाला नय है । अनेक रूप अर्थ को विषय करने वाला अनेकांत का ज्ञान प्रमाण है । अन्य धर्मों की अपेक्षा करके उसके एक अंश का ज्ञान नय है एवं अन्य धर्मों का निराकरण करके एक अंशग्राही दुर्णय है । क्योंकि यह दुर्णय विपक्ष का विरोधी होने से केवल स्वपक्ष मात्र का हठाग्राही है। द्रव्य और पर्याय को विषय करने वाले संग्रहादि नय हैं और उसके भेद-प्रभेद रूप उपनय कहलाते हैं।
___ उन नयों के जो एकांत हैं विपक्ष का सर्वथा त्याग न करके मात्र विपक्ष की उपेक्षा करते हैं ऐसे उन त्रिकाल विषयक एकांतों का समुदाय द्रव्य है, वही वस्तुभूत हैं। "गुणपर्ययवद् द्रव्यम्" ऐसा सूत्र है।
तथा उन द्रव्य-पर्याय विशेषों का अपृथक स्वभाव सम्बन्ध ही समुच्चय है द्रव्य दृष्टि से जो वस्तु एक है, वही पर्याय से अनेक है।
अतः त्रिकालवर्ती नयोपनय का विषयभूत पर्याय विशेष का समूह ही द्रव्य है और वह अनेकान्तात्मक रूप जात्यंतर वस्तु है।
यदि आप कहें कि मिथ्याभूत एकांत का समुदाय मिथ्या रूप ही है तो हमने ऐसा माना ही नहीं है हमारे यहाँ निरपेक्ष नय मिथ्या है उनका समूह भी मिथ्या ही है। यदि वे ही नय सापेक्ष हैं तो वस्तुभूत हैं और अर्थक्रियाकारी हैं।
नय के मूल में दो भेद हैं-द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक । इन दोनों से ही सात नय हो जाते हैं। उनमें नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समाभिरूढ़ तथा एवंभूत ये सात भेद हैं । प्रारम्भ के ४ नय अर्थ नय हैं और अन्त के ३ नय द्रव्य नय हैं। मूल द्रव्याथिक नय शूद्धि से संग्रह को विषय
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