Book Title: Ashtsahastri Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 642
________________ स्याद्वाद का लक्षण ] तृतीय भाग [ ५६३ स्याद्वादपर्याय: । 'सोयमनेकान्तमभिप्रेत्य सप्तभङ्गनयापेक्षः स्वभावपरभावाभ्यां सदसदादिव्यवस्थां प्रतिपादयति । के पुनः सप्तभङ्गाः के वा नया: ? सप्तभङ्गी प्रोक्ता पूर्वमेव । [ द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिकनययोः भेदप्रभेदान् वर्णयन्त्याचार्याः ] द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिकप्रविभागवशान्नैगमादयः + शब्दार्थनया बहुविकल्पा 'मूलनयद्वयशुद्धयशुद्धिभ्यां शास्त्रान्तरे प्रोक्ता इति सम्बन्धः । द्रव्यार्थिकप्रविभागाद्धि नैगमसंग्रहव्यवहाराः पर्यायार्थिकप्रविभागादृजुसूत्रादयः । तत्र ऋजुसूत्रपर्यन्ताश्चत्वारोर्थनया:, तेषामर्थ - प्रधानत्वात् । ' शेषास्त्रयः शब्दनयाः शब्दप्रधानत्वात् । तत्र मूलनयस्य द्रव्यार्थिकस्य शुद्ध्या संग्रह:, सकलोपाधिरहितत्वेन शुद्धस्य सन्मात्रस्य विषयीकरणात् सम्यगेकत्वेन सर्वस्य कि शब्द से चित् चन आदि शब्दों का प्रयोग करने से ये स्याद्वाद के ही पर्याय नाम बन जाते हैं । और ये शब्द अनेकांत का विषय करके, सप्तभंग नयों की अपेक्षा करके स्वभाव - परभाव के द्वारा सत्-असत् आदि की व्यवस्था को प्रतिपादित करते हैं । प्रश्न - सप्तभंग कौन-कौन हैं अथवा नय कौन-कौन हैं ? उत्तर - सप्तभंगी का कथन तो पहले ही कह दिया है, अब नयों का कथन करते हैं । [ द्रव्याथिक और पर्यायार्थिक नयों के भेद प्रभेदों का आचार्य वर्णन करते हैं । ] में दो नय हैं- द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक। इन दोनों नयों के निमित्त से नैगमादि सात नय मूल हो जाते हैं, उसमें भी शब्द नय और अर्थ नय के भेद से दो भेद हैं। मूल दो नयों में शुद्धि और अशुद्धि के निमित्त से दो-दो भेद हो जाते हैं जिनका वर्णन अन्य शास्त्र नय चक्र नाम के शास्त्र में किया गया है । अर्थात् द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से शुद्धि - अभेद और अशुद्धि-भेद है । और पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से शुद्धि-भेद और अशुद्धि - अभेद है ऐसा समझना । द्रव्याथिक नय के विभाग से नैगम, संग्रह और व्यवहार ये तीन नय कहे जाते हैं, एवं पर्यायार्थिक नय के विभाग से ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत ये चार नय ग्रहण किये जाते हैं । इन सातों ही नयों ऋजुसूत्र तक प्रारम्भ से अर्थात् नैगम, संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्र ये चार नय अर्थ नय कहलाते हैं। क्योंकि ये नय प्रधान रूप से अर्थ को विषय करते हैं। शेष 1 अनेन सर्वथैकान्तत्यागादित्येतद्व्याख्यातम् । दि० प्र० । 2 अनेन हेयादेयविशेषक इत्येतद्वयाख्यातम् । दि० प्र० । 3 द्रव्यमाश्रित्य प्रवर्तमानो नयोद्रव्यार्थिकः । व्या० प्र० । 4 भेद । व्या० प्र० । 5 शुद्धिर्भेदस्य निराकरणं कान्तवादिनामशुद्धिश्च भेदानिराकृतिर्यथा नेकान्तवादिनाम् । ब्या० प्र० । 6 शब्दादयस्त्रयः । इति पा० । दि० प्र० । 7 जीवादिविशेषण | दि० प्र० । 8 तद्धि दुर्लभत्वं भविष्यतीत्याशंकायामाह । दि० प्र० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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