Book Title: Ashtsahastri Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

Previous | Next

Page 643
________________ ५६४ ] अष्टसहस्री [ द० प० कारिका १०४ संग्रहणात् । तस्यैवाशुद्ध्या व्यवहारः, संग्रहगृहीतानामर्थानां विधिपूर्वकत्वव्यवहरणात्, 'द्रव्यत्वादिविशेषणतया स्वतोऽशुद्धस्य ‘स्वीकरणात्, यत्सत्तद्रव्यं गुणो वेत्यादिवत् । एवं 'नगमोप्य शुद्ध्या प्रवर्तते, 'सोपाधिवस्तुविषयत्वात् । स हि त्रेधा प्रवर्तते, 'द्रव्ययोः पर्याययोर्द्रव्यपर्याययोर्वा गुणप्रधानभावेन विवक्षायां नैगमत्वात्, नैक गमो नैगम इति निर्वचनात् । तत्र 'द्रव्यनगमो द्वेधा-शुद्धद्रव्यनगमोऽशुद्धद्रव्यनगमश्चेति । पर्यायनैगमस्त्रेधा14अर्थपर्याययोर्व्यञ्जनपर्याययोरर्थव्यञ्जनपर्याययोश्च नैगम इति । अर्थपर्यायनैगमस्त्रेधा तीन-शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत ये शब्द नय कहलाते हैं क्योंकि ये शब्द को प्रधानतया विषय करते हैं। उनमें मूल द्रव्याथिकनय शुद्धि-अभेद से संग्रह करता है । सकल उपाधि से रहित शुद्धि सन्मात्र को विषय करता है। सं-सम्यक प्रकार से-एक रूप से सभी का ग्रहण करना संग्रह कहलाता है। सं-सम्यगेकत्वेन सर्वान गण्हातीति-संग्रहः। ऐसा व्यत्पत्ति अर्थ है। उसी का अशुद्धि-भेद से कहना व्यवहार है । क्योंकि संग्रह के द्वारा ग्रहीत पदार्थों में विधिपूर्वक भेद करना व्यवहार है। जैसे-संग्रह नय ने सत् द्रव्य कहा तो व्यवहार नय ने उसके जीव और अजीव भेद कर दिये। क्योंकि यह द्रव्यत्वादि विशेषण रूप से स्वतः अशुद्ध को स्वीकार करता है। जैसे जो सत् है वह द्रव्य है या गुण है इत्यादि के समान । इस प्रकार से नैगमनय भी अशुद्धि रूप से (भेद को ग्रहण करके) प्रवृत्ति करता है। क्योंकि उपाधि सहित वस्तु को विषय करता है। उस नैगम नय के तीन भेद हैं। दो द्रव्य में या दो पर्याय में अथवा द्रव्य और पर्याय में गुण, प्रधान की विवक्षा के होने पर वह नैगम कहलाता है। __ "नैकंगमो नैगमः" जो एक को न प्राप्त हो वह नैगम है, ऐसा व्युत्पत्ति अर्थ है। उस द्रव्य नैगम के दो भेद हैं-शुद्ध द्रव्यनैगम और अशुद्ध द्रव्यनगम । __ पर्याय नैगम के तीन भेद हैं-१. दो अर्थ पर्याय को विषय करे २. दो व्यंजन पर्याय को विषय करे । ३. अर्थ और व्यंजन पर्याय को विषय करे । उसमें भी अर्थ पर्याय-नैगम के तीन भेद हैंदो ज्ञान की अयं पर्यायों का नैगम, दो ज्ञेय की अर्थ पर्यायों का नैगम और ज्ञानार्थ पर्याय तथा ज्ञेयार्थ पर्याय का नैगम । 1 द्वव्यार्थिकस्य । दि ०प्र० । 2 बसः । दि० प्र०। 3 सतो। इति पा० । सत्सामान्यस्य । दि० प्र०। 4 अत्र द्रव्य शब्देन षद्रव्यस्य घटादिकार्य द्रव्यस्य च ग्रहणम् । दि० प्र०। 5 व्यवहारनयप्रकारेण । ब्या० प्र० । 6 शुद्धधम् । इति पा० । भेदेन । दि० प्र.। 7 द्रव्यनगमपर्याय नैगमः । दि० प्र०। 8 नैगमः । दि० प्र० । 9 स्वपरभेदे द्विवचनम् । दि० प्र० ।10 त्रिष मध्ये । दि० प्र० । 11 ताद्धिः । दि० प्र०। 12 शुद्धाशुद्ध । इति पा० । सत्तासामान्य । जीवादिद्रव्य । ब्या० प्र०। 13 द्रव्यनगमोशद्धद्रव्यद्वयं नैगमश्चेति । इति पा० । दि० प्र०। 14 अथौं च तो पर्यायौ च । दि० प्र०। 15 ता । दि० प्र० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688