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विसदृश कार्योत्पादहेतुकवाद का खण्डन ]
तृतीय भाग
[ २१३
इसलिये ये स्कंध उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य से रहित हैं, क्योंकि आप इन्हें अपरमार्थ कहते हो । इस प्रकार से स्कंध उत्पादादि से रहित होने से सत् भी नहीं रहे । खपुष्पवत् असत् हो गये । पुनः उस कपाल लक्षण कार्य के लिये मुद्गरादि को हेतु कैसे माना है ? अर्थात् सम्भव नहीं है । अतएव आपको अर्थ पर्याय की अपेक्षा प्रत्येक वस्तु में नाशोत्पाद रूप स्वभाव पर्याय को अहेतुक एवं विभाव पर्याय की अपेक्षा नाशोत्पाद को सहेतुक मानना चाहिये ।
सार का सार - बौद्ध कहता है कि घड़े पर किसी ने मुङ्गर प्रहार किया तो घड़ा फूट गया । इसमें घट के विनाश में मुद्गर हेतु नहीं है । यह विनाश अहेतुक है एवं जो घड़े से टुकड़े-टुकड़े हुये उनकी उत्पत्ति में मुद्गर हेतु अवश्य है । परन्तु आचार्य का कहना है कि पूर्व पर्याय का विनाश ही उत्तर पर्याय का उत्पाद है अतः इन विनाश उत्पाद में एक ही हेतु है ऐसा स्पष्ट है । इस बौद्ध बेचारे
तो कार्य को सहेतुक मान लिया है किन्तु आजकल कुछ ऐसे लोग भी हैं जो विनाश और उत्पाद दोनों को ही अहेतु कह देते हैं। उनका कहना है कि कार्य का उत्पाद होना था तब निमित्त उपस्थित हो गया है । उस निमित्त बेचारे ने कुछ भी नहीं किया है, उन कहने वालों की दशा तो बौद्धों से भी अधिक शोचनीय है |
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