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अष्टसहस्री
[ तृतीय रिच्छेद इस तरह से लौकिक जनों को वस्तु त्रयात्मक सिद्ध हो गई। अब अलौकिक दृष्टांत द्वारा सिद्ध करते हैं। जिसका दूध ही पीने का नियम है वह दही नहीं खाता है। दही लेने का नियम जिसका है वह दूध नहीं पीता है । एवं जिसका गोरस का ही त्याग है वह दूध, दही दोनों को ही ग्रहण नहीं करता है । अतः तत्त्व त्रयात्मक ही है ।
यदि कोई कहे कि वस्तु को त्रयात्मक मान लेने पर उसे 'अनन्तात्मक' मानना विरुद्ध ही है किन्तु ऐसा नहीं है । एक घट का उत्पाद है वह पट, मठ, घाटिका आदि के उत्पाद से व्यावृत्त है इत्यादि अनंत पदार्थों के उत्पाद से व्यावृत्त -भिन्न है । और पर रूप से व्यावृत्ति भी वस्तु का स्वभाव होने से वे अवस्तु रूप नहीं हैं । घट के उत्पाद में पररूप से व्यावृत्तियां रूप उत्पाद अनंत होने से वे सब उत्पाद घट के हैं । अतः अनंत उत्पाद हो गये हैं । तथैव नाश और स्थिति भी अनंत हो जाती है।
अतः वस्तु त्रयात्मक एवं अनंतात्मक सिद्ध है । वही एक बस्तु नित्य, अनित्य उभयात्मक भी है।
तथैव सप्तभंगी प्रक्रिया सुघटित है, स्यात् सभी वस्तु नित्य ही हैं। स्यात् अनित्य ही हैं । स्यात् उभय ही हैं । स्यात् अवक्तव्य ही हैं । स्यात् नित्यावक्तव्य ही हैं। स्यादनित्यावक्तव्य ही हैं। स्यादुभयावक्तव्य ही हैं।
इस प्रकार प्रमाण नय की विविक्षा से स्याद्वाद सिद्ध है।
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