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अष्टसहस्री
[ मायादिभ्रांत शब्दः सत्योऽर्थो न कथ्यते अतः जीवशब्दोपि बाह्यार्थो न भवतीति बौद्धेनोच्यमाने जैनाचार्याः समादधते । ]
[ स० प० कारिका ८४
ननु च मायादिभ्रान्तिसंज्ञाभिरबाह्यार्थाभिरनैकान्तिकं संज्ञात्वमिति चेन्न, तासामपि मायाद्यैः स्वैरर्थैः सबाह्यार्थत्वात् प्रमाणवचनवत् । न हि मायादिसमाख्याः स्वार्थरहिता विशिष्टप्रतिपत्तिहेतुत्वात् प्रमाणसमाख्यावत् । 2 भ्रान्तिसमाख्यानामबाह्यार्थत्वे ततो भ्रान्तिप्रतिपत्तेरयोगात् प्रमाणत्वप्रतिपत्तिप्रसङ्गान्न विशिष्ट प्रतिपत्तिहेतुत्वमसिद्धम् । प्रमाणशब्दस्य
[ मायादि भ्रांत शब्दों से सत्य अर्थ नहीं कहा जाता है अतः जीव शब्द भी बाह्यार्थ सहित नहीं है ऐसा बौद्ध के कहने पर जैनाचार्य समाधान करते हैं । ]
बौद्ध - बाह्यार्थ से शून्य - इन्द्र जालादि रूप माया आदि भ्रांति संज्ञाओं के द्वारा आपका "संज्ञात्वात् " हेतु अनैकांतिक हो जाता है ।
जैन - नहीं । वे मायादि भ्रांति रूप शब्द भी अपने-अपने मायादि अर्थों से सहित होने से बाह्यार्थ सहित हैं । जैसे प्रमाण शब्द प्रमाण लक्षण ज्ञान लक्षण बाह्यार्थ से सहित है ।
माया आदि शब्द अपने अर्थ से रहित नहीं है क्योंकि वे भ्रांति विषयक, विशिष्ट असाधारण रूप अपने ज्ञान को कराने में हेतु हैं, जैसे प्रमाण शब्द |
यदि भ्रांतिवाचक शब्द अपने भ्रांति रूप अर्थ को कहने वाले नहीं माने जावेंगे तब तो उन भ्रांतिवाचक शब्दों से भ्रांति का ज्ञान ही नहीं हो सकेगा । पुनः उन भ्रांतिमान् शब्दों के द्वारा अभ्रांत - प्रमाण रूप ज्ञान का प्रसंग आजावेगा । अर्थात् जब भ्रांति शब्द प्रांति को नहीं कहेंगे तब तो अम्रांति को ही कहेंगे । इस प्रकार से सर्वश्रांति का अभाव होने से सभी बाह्य स्वीकृतियां प्रमाणभूत हो जावेंगी, किन्तु ऐसा तो है नहीं । अतएव हमारा “विशिष्ट प्रतिपत्ति हेतुत्वात् " यह असिद्ध नहीं है ।
तथा यदि आप प्रमाण शब्द को ज्ञान लक्षण अपने अर्थ से अहित मानोगे तब तो म्रांतिज्ञान का प्रसंग आ जावेगा, किन्तु ऐसा न होने से वह प्रमाण शब्द अपने अर्थ विशेष से सहित ही है अतएव " विशिष्ट प्रतिपत्ति हेतुत्व" असिद्ध नहीं है कि जिससे हमारा उहाहरण साधन धर्म से विकल हो सके । अर्थात् उदाहरण साधन धर्मविकल नहीं है ।
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इसी कथन से "खर विषाणादि शब्द भी अपने अभाव रूप अर्थ से रहित है" ऐसा कहने वालों का भी निरसन कर दिया गया है क्योंकि अभाव रूप से विशिष्ट असाधारण रूप ज्ञान हेतुत्व यहां भी विद्यमान है । अन्यथा - इनमें विशिष्ट प्रतिपत्ति हेतुत्व का अभाव मानने से ये खरविषाणादि
I शब्दानाम् । व्या० प्र० । 2 भ्रान्तेद्विचन्द्ररूपयोः । ब्या प्र० । 3 अतः विशिष्ट प्रतिपत्तिर्हेतुत्वादिति साधनमसिद्धं न सिद्धमेव = प्रमाणशब्दः स्वकीयार्थविशेषरहितो भवति चेत्तदा प्रमाणस्य प्रतिपत्तिरायाति यतः उदाहरणेपि तत्साधनं सिद्धमेव । दि० प्र० । 4 नव स्यात् । ब्या० प्र० ।
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