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अष्टसहस्री
[ द० ५० कारिका ६६ त्यैकस्वभावबोधस्यापि महेश्वरस्य न विरुद्धा तत्समानसमयानेकतन्वादिकार्योत्पत्तिश्च', पूर्वसिसृक्षात उत्तरसिसृक्षायास्तत्समानकालतन्वादिकार्याणां च भावादनादित्वात् कार्यकारणप्रवाहस्येति चेन्न, एकस्वभावस्येश्वरबोधस्यैकस्य पूर्वपूर्वसिसृक्षापेक्षाविरोधात्, तदपेक्षायां स्वभावभेदादनित्यतापत्तेः । अथ सिसृक्षातन्वादिकार्योत्पत्तौ नेश्वरबोधः सिसृक्षान्तरमपेक्षते, तत्कार्याणामेव तदपेक्षत्वादिति मतं तदप्यसत्, नित्येश्वरबोधस्य तदनिमित्तत्वप्रसङ्गात् । तदभावेऽभावात्तस्य तन्निमित्तत्वे सकलात्मना तन्निमित्तता स्याद्, व्यतिरेकाभावाविशेषात् । अथासर्वगतस्येश्वरबोधस्य नित्यत्वात्कालव्यतिरेकाभावेपि न देशव्यतिरेकासिद्धिः । सकलात्मनां तु नित्यसर्वगतत्वाकालदेशव्यतिरेकासिद्धिरिति मतं तहि दिक्कालाकाशानां तत एव सर्वोत्पत्तिमन्निमित्तकारणता मा भूत् ।
नैयायिक–पूर्व-पूर्व की सिसृक्षा के निमित्त से उत्तरोत्तर सिसृक्षा की उत्पत्ति होती है। वह नित्य, एक ज्ञान स्वभाव वाले महेश्वर में विरुद्ध भी नहीं है और उस समान समय में होने वाले तनु आदि कार्यों की उत्पत्ति भी विरुद्ध नहीं है क्योंकि पूर्व सिसृक्षा से उत्तर की सिसक्षा और उस समान काल में होने वाले तनु आदि कार्य होते रहते हैं क्योंकि कार्य-कारण का प्रवाह तो अनादि
जैन-ऐसा नहीं कहना क्योंकि एक स्वभाव वाले ईश्वर का ज्ञान भी एक ही है अत: उस एक ज्ञान को पूर्व-पूर्व सिसृक्षा की अपेक्षा ही विरुद्ध है। यदि पूर्व-पूर्व सिसृक्षा की अपेक्षा आप मानोगे तब तो स्वभाव भेद सिद्ध हो जाने से उस महेश्वर के ज्ञान को अनित्य भी मानना पड़ेगा।
नैयायिक-सिसृक्षा और तन्वादि कार्यों की उत्पत्ति में ईश्वर का ज्ञान सिसक्षान्तर की अपेक्षा नहीं रखता है, किन्तु सिसृक्षान्तर भिन्न-भिन्न सिसृक्षा से होने वाले कार्य ही उस ईश्वर के ज्ञान की अपेक्षा रखते हैं।
जैन आपकी यह मान्यता भी असत् ही है क्योंकि नित्य ईश्वर का ज्ञान तन्वादि कार्यों की उत्पत्ति में निमित्त नहीं हो सकेगा तब तो उस नित्य ईश्वर ज्ञान के अभाव में उन तनु भुवन आदि कार्यों का भी अभाव हो जावेगा और ईश्वर ज्ञान को उनमें निमित्त मानने पर तो सभी तनु आदिक कार्यों में उसकी निमित्तता हो जावेगी क्योंकि व्यतिरेक का अभाव दोनों जगह समान है अर्थात् नित्य ईश्वर के ज्ञान में और संपूर्ण प्राणियों में व्यतिरेक का अभाव समान ही है। अभिप्राय यह है कि ईश्वर ज्ञान के अभाव में सम्पूर्ण कार्यों का अभाव हो जावे, किन्तु सकल जीवों का अभाव
1 उत्तरोत्तरसिसक्षायाः । ब्या० प्र०। 2 तयोः । ब्या० प्र०। 3 सकलजीवानाम् । ब्या० प्र०। 4 पर आह ईश्वरज्ञानमसर्वगतं परन्तु नित्यं तस्मात्तस्य कालव्यतिरेकाभावे देशव्यतिरेकोस्ति । सर्वजीवानां नित्यत्वात् सर्वगतत्वाच्च कालदेशव्यतिरेको नास्ति ततस्तेषां कार्यनिमित्तता नास्ति । दि० प्र०। 5 ता। दि० प्र०।
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