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देववाद का खण्डन ] तृतीय भाग
[ ४३६ पौरुषादेवस्य परिक्षयान्मोक्षप्रसिद्धेर्न तनिष्फलमिति चेत् सैव' प्रतिज्ञाहानिः । मोक्षकारणषौरुषस्यापि दैवकृतत्वात् परंपरया मोक्षस्यापि देवकृतत्वोपपत्तेर्न प्रतिज्ञाहानिरिति चेत् तहि पौरुषादेव तादृशं दैवमिति न दैवैकान्तः । एतेन धर्मादेवाभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिरित्येकान्त: प्रतिक्षिप्तो, महेश्वरसिसृक्षानर्थक्यप्रसङ्गाच्च ।
कुतस्तहि समीहितार्थसिद्धिरित्युच्यते । योग्यता कर्म पूर्व वा दैवमुभयमदष्टं, पौरुषं पुनरिहचेष्टितं' दृष्टम् । ताभ्यामर्थसिद्धिः, तदन्यतरापायेऽघटनात् पौरुषमात्रैर्थादर्श
।
शंका (मीमांसक)-पुरुषार्थ से दैव का निर्मूल नाश हो जाने से मोक्ष की प्राप्ति प्रसिद्ध है इसलिये पुरुषार्थ निष्फल नहीं होगा।
समाधान (जैन –यदि ऐसा कहो तब तो आपकी प्रतिज्ञा नष्ट हो जावेगी अर्थात् आपने दैव से ही सभी कार्य माने हैं तो यह बात कहाँ सिद्ध होगी? क्योंकि आपने पुरुषार्थ से मुक्ति की प्राप्ति तो स्वीकार ही कर ली है।
मीमांसक मोक्ष का कारणभूत पुरुषार्थ भी दैवकृत ही है अतः परम्परा से मोक्ष सिद्धि भो भाग्यकृत ही रही। इसलिये प्रतिज्ञा हानि दोष नहीं आता है ।
जैन-यदि ऐसा कहो तब तो पुरुषार्थ से ही वैसा दैव बना है इस प्रकार से देवैकान्त पक्ष भी नहीं रहा । “पुरुषार्थ से ही वैसा देव होता है" इसी कथन से “धर्म से ही अभ्युदय एवं निःश्रेयस की सिद्धि होती है" इस एकांत पक्ष का भी खण्डन कर दिया गया है और महेश्वर की सृष्टि करने की इच्छा व्यर्थ हो जावेगी अर्थात् श्लोक "अज्ञो जन्तुरनीशोऽयमात्मनः सुखदुःखयो । ईश्वर प्रेरितो गच्छेत् श्वभ्रं वा स्वर्गमेव वा ।।"
अर्थ-यह संसारी प्राणी अज्ञानी है और अपने सुख दुःख में असमर्थ है यह ईश्वर की प्रेरणा से ही स्वर्ग-नरक जाता है इत्यादि रूप से कल्पित महेश्वर को सृष्टि की इच्छा निष्फल हो जावेगी कारण कि सृष्टि की उत्पत्ति तो दैवाधीन हो गई पुनः महेश्वर उस सृष्टि का कारण कैसे घटेगा?
भाग्यवादी-पुनः समीहित कार्य की सिद्धि कैसे होगी ? अर्थात् आर भाग्य को तथा पुरुषार्थ को किसी एक को भी कारण नहीं मानते रहे हैं तब समीहित कार्य कैसे सिद्ध होंगे ?
जैन-योग्यता, पूर्वकर्म अथवा देव अदृष्ट हैं एवं सभी भाग्य के ही पर्यायवाची नाम हैं तथा इह चेष्टित पौरुष-यहाँ पर किये गये पुरुषार्थ दृष्ट हैं ये पुरुषार्थ के नामान्तर हैं। इन दोनों के द्वारा ही अर्थ को सिद्धि होती है, इनमें से किसी एक का अभाव मानने पर व्यवस्था नहीं घटित होगी
1 पुण्यपापरूपस्य । ब्या० प्र०। 2 न तु । इति पा० । दि० प्र०। 3 देवादर्थसिद्धिः । दि० प्र०। 4 परम्परया मोक्षकारणम् । ब्या० प्र० । 5 पुरुषस्य । ब्या० प्र० । 6 पूर्व कर्म । इति पा० । ब्या० प्र० । दि० प्र० । 7 पुरुष, व्यापृतम् । दि० प्र० । 8 दृष्टादृष्टाभ्याम् । दि० प्र० । 9 अभावे। दि० प्र० । 10 अर्थसिद्धरसंभवात् । दि. प्र० ।
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