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अष्टसहस्री
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[ द. १० कारिका ६६ वश्यंभावातन्निबन्धनमिथ्याज्ञानान्तरोद्भूतेः केवलोभूतिविरोधात् । न चागमबलात्सकलतत्वज्ञानाविभूतिरुपपद्यते', ज्ञेयस्य विशेषतोनन्तत्वादागमाविषयत्वादनुमानाद्यविषयत्ववत्', यतः कृत्स्नमिथ्याज्ञाननिवृत्तेः केवलाविर्भावः संभाव्यते । स्तोकतत्त्वज्ञानान्मोक्ष इत्यप्य. नेन निराकृतं, बहुतो मिथ्याज्ञानाद्वन्धस्य प्रसक्तेः । 'स्तोकतत्त्वज्ञानप्रतिहताबहुतो' मिथ्याज्ञानान बन्ध इति चेत्कयमेवं मिथ्याज्ञानळू वो बन्धः स्यात् ? कथं वा स्तोकतत्त्वज्ञानात् प्रवर्तकधर्मनिबन्धनात्सुण्यबन्धः ? इति "दुरवबोधम् । एतेनान्त्यमिथ्याज्ञानान्न बन्ध इत्येतदप्यपास्तं, "प्रतिज्ञातविरोधाविशेषात् । रागादिदोषसहितान्मिथ्याज्ञानाद्बन्धो निर्दोषान बन्ध इत्यपि प्रतिज्ञातविरोधि कापिलानां, वैराग्यसहितातत्त्वज्ञानान्मोक्षवचनवत् ।
सांख्य -स्तोक तत्त्वज्ञान से बहुत सा मिथ्याज्ञान नष्ट हो जाता है इसलिये बंध नहीं हो सकता है।
जैन-तब तो "मिथ्याज्ञान से ही निश्चित बन्ध होता है" एकांत से यह बात कहां रही? अथवा प्रवर्तक धर्म निमितक रूप, स्तोकतत्त्वज्ञान से पुण्यबन्ध होता है । यह बात कहाँ सिद्ध हई इस प्रकार से आपका तत्त्व दुःख बोध ही है। इसी कथन से जिनका ऐसा कहना है कि "अंतिम मिथ्याज्ञान से बंध नहीं होता है" उनका भी खण्डन कर दिया है । अर्थात् मिथ्याज्ञान के दो भेद हैं१. सदोष, २. निर्दोष । उनमें अन्तिम निर्दोष मिथ्याज्ञान से बंध नहीं होता है क्योंकि आपकी प्रतिज्ञा का विरोध दोनों जगह समान ही है ।
सांख्य-रागादि दोष सहित मिथ्याज्ञान से बंध होता है, निर्दोष मिथ्याज्ञान से बंध नहीं होता है।
जैन -आप सांख्यों का यह कथन भी प्रतिज्ञा का विरोधी है । जैसे वैराग्य सहित तत्त्वज्ञान से मोक्ष मानना प्रतिज्ञा विरोधी है अर्थात् "वैराग्य सहित तत्त्वज्ञान से मोक्ष मानना" स्तोक तत्त्वज्ञान से मोक्ष कहने से विरोधी है।
1 सह जमिथ्याज्ञानज्ञातबन्ध कारणोत्पन्नान्यमिथ्याज्ञानोत्पादात् केवलोत्पतिविरुद्धयते । दि० प्र०। 2 आशङ्कयाह । ब्या० प्र० । 3 सांख्यागमात् । दि० प्र० 14 ज्ञेयस्य विशेषतोनुमानाद्य विषयत्वं यथा । दि० प्र०। 5 का । ब्या. प्र०। 6 कृत्स्तमिथ्याज्ञानविवत्तरसंभव इत्यनेन । ब्या० प्र० । 7 सांख्य । दि० प्र०। 8 बहुतोपि । इति पा० । दि० प्र०।१ इति तव वचः । दि० प्र०। 10 एतत् । ब्या० प्र०। 11 मिथ्याज्ञानाद्ध वो बन्ध इति । ब्या० प्र.। 12 क्षीण । दि० प्र० ।
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