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हेतुवाद और आगमवाद के एकांत का खण्डन ] तृतीय भाग
[ ३५१ इह हि सकललौकिकपरीक्षकैः उपेयतत्त्वं' व्यवस्थाप्योपायतत्त्वं व्यवस्थाप्यते, कृप्यादिषु प्रवर्तमानानां व्यवस्थितसस्याद्युपेयानामेव तदुपायव्यवस्थापनप्रयत्नोप्लम्भात्, 'प्रयोजनमनुद्दिश्य न मन्दोपि प्रवर्तते' इति प्रसिद्धः, मोक्षार्थिनां च प्रेक्षावतां व्यवस्थितोपेयमोक्ष'स्वरूपाणामेव तदुपायव्यवस्थापनव्यापारदर्शनात्", "अव्यवस्थितमोक्षतत्त्वानां तदुपायव्यवस्थापनपराङ्मुखत्वाच्चार्वाकादिवत् ।
यदी हेतु से सभी तत्त्व की, सिद्धी मानी जाय सही। तब प्रत्यक्ष, अनुमान आदि से, वस्तुस्थिति अरु ज्ञान नहीं । यदि आगम से सभी तत्त्व को सच्चे सिद्ध कोई करते।
तब विरुद्ध मत वाले आगम, से विरुद्ध मत सच होंगे ॥७६।। कारिकार्थ-यदि सभी तत्त्व एकांत से हेतु से ही सिद्ध होते हैं तब तो प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से किसी तत्त्व की सिद्धि नहीं हो सकेगी। यदि सभी तत्त्व आगम से ही सिद्ध माने जायेंगे तब तो विरुद्ध अर्थ के प्रतिपादन करने वाले मत भी आगम से सिद्ध हो जावेंगे ।।७६।।
यहाँ पर सकल लौकिक और परीक्षकजनों के द्वारा 'उपेय तत्त्व की व्यवस्था करके उपाय तत्त्व की व्यवस्था की जाती है।'
कृषकजन कृषि आदि कार्यों में प्रवृत्ति करते हुए निश्चित सस्य आदि उपेय रूप वस्तु को जानकर ही उपायभूत कृषि आदि कर्म की व्यवस्था में प्रयत्नशील देखे जाते हैं। क्योंकि प्रयोजनमनुद्दिश्य न मंदोऽपि प्रवर्तते" प्रयोजन के बिना मूर्ख अथवा आलसी भी किसी कार्य में प्रवृत्ति नहीं करते हैं । ऐसी बात लोक में भी प्रसिद्ध है । एवं बुद्धिमान मोक्षार्थी पुरुष भी व्यवस्थित मोक्षस्वरूप उपेय तत्त्व का निश्चय करके ही उस मोक्ष प्राप्ति के उपायभूत तत्त्वों की व्यवस्था में व्यापार करते हैं ऐसा देखा जाता है क्योंकि जिन्हें उपेयरूप मोक्ष तत्त्व का निश्चय नहीं हुआ है वे उसके उपाय की व्यवस्था में भी पराङ्मुख ही हैं, जैसे कि चार्वाक आदि ।
कोई बौद्ध लोग हेतुवाद को ही मानते हैं उसी का स्पष्टीकरण
1 उपादेयत्वम् । दि० प्र०। 2 कारण। ब्या० प्र०। 3निर्णीति । दि० प्र०। 4 एव । दि० प्र०। 5 कारण । दि० प्र०। 6 उपेयञ्च तन्मोक्षस्वरूपञ्च तनिश्चितं यस्तेषाम् । ब्या० प्र०। 7 व्यवस्थितमोक्षस्वरूपाः पुरुषा: पक्षस्तदुपाये प्रवर्तन्त इति साध्यो धर्मो व्यवस्थितमोक्षतत्त्वानां तदुपायपराङ्मुखत्वात् । ये अव्यवस्थितमोक्षतत्त्वेन यदुपायपराङमखास्ते तदुपाये न प्रवर्तन्ते यथा चार्वाकादयः । दि० प्र०। 8 निश्चयेन । दि० प्र०।१ रत्नत्रय । दि० प० । 10 निश्चयेन । ब्या०प्र०। 11 अनिश्चित । ब्या०प्र० । 12 मोक्ष । ब्या० प्र०। 13 कारण । ब्या०प्र० ।
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