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३०८ ]
अष्टसहस्री
[ च० प० कारिका ६६
साङ्ख्यानां च कार्यकारणयोः',
एक त्वेन्य तराभावः शेषाभावोविनाभुवः । द्वित्वसंख्याविरोधश्च' संवृत्तिश्चेन्मृषेव सा ॥६६॥
[ सांख्यः कार्यकारणयोः सर्वथा तादात्म्यं मन्यते तस्य निराकरणं ] कार्यस्य हि महदादेः कारणस्य च प्रधानस्य परस्परमेकत्वं तादात्म्यम् । तस्मिन्नभ्युपगम्यमानेन्य'तरस्याभावः स्यात् । 10ततः शेषस्याप्यविनाभुवोऽभावः । इति सर्वाभाव:11
उत्थानिका-सांख्यों के यहाँ भी कार्य कारण में सर्वथा एकत्व मानने पर व्यवस्था नहीं बनती है।
कार्य और कारण में यदि एकत्व कहो तब एक रहे। चंकि दोनों अविनाभावी अतः शेष भी नहीं रहे। द्वित्व कथन भी विरुद्ध होता, यदि संवृत्ति से मानोगे।
संवृत्ति तो यह मृषा कहाती अतः सभी मिथ्या होंगे ॥६६।। कारिकार्थ-आप सांख्य आदि सर्वथा कार्य कारण में एकत्व स्वीकार करेंगे तब तो दोनों में से किसी एक का अभाव हो जायेगा । पुनः एक किसी का अभाव होने पर शेष दूसरे बचे हुए का भी अभाव हो जायेगा; क्योंकि उन दोनों में अविनाभाव नियम है। तथा च 'यह कार्य है और यह कारण है। इस तरह की दो की संख्या में भी विरोध हो जायेगा। यदि आप कहें कि संवृत्ति से ये सब कार्य कारण, द्वित्व संख्यादि हैं तब तो वह आपकी संवृत्ति तो सर्वथा असत्य ही है । ॥६६॥
[ सांख्य कारण और कार्य में सर्वथा तादात्म्य मानता है, जैनाचार्य उसका निराकरण करते हैं। ]
महान्, अहंकार आदि तो कार्य हैं और प्रधान कारण इन दोनों में परस्पर में एकत्व का होना तादात्मय है। इस प्रकार से दोनों में एकत्व के स्वीकार करने पर दो में से किसी एक का
1 मते । दि० प्र०। 2 स्याद्वाद्याह । सांख्यानान्तु कार्यकारणयोः एकत्वाभ्युपगमे द्वयोर्मध्येऽन्यतरस्य कार्यस्य कारणस्याभावः स्यात् । एकतराभावे द्वितीयस्याप्यभावः । कस्मात् । शेषस्यान्यतरेण सहाविनाभावित्वात् अत्राह सांख्यः कार्यस्य कारणेऽनुप्रवेशात् कारणस्य नित्यत्वाच्च द्वयोरैक्यमेवेति चेत् । तदा सांख्यस्य द्वित्वसंख्याविरोधोपि स्यात् । पनराह सांख्यः हे स्याद्वादिन द्वित्वसंख्यास्मन्मते संवृत्तिावहारिक्यस्ति इत्युक्त स्याद्वाद्याह । तहि सा संवत्तिः मषामयानन पारमायिकीति । दि० प्र० । 3 महदादिप्रधानलक्षणयो: कार्यकारणयोस्तादात्म्येऽगीक्रियमाणे। दि० प्र०। 4 द्वयोर्मध्ये कूत उभयोः सर्वथैकत्वात् । दि० प्र०। 5 कारणस्य । ब्या० प्र०। 6 अभावः । दि० प्र०। 7 किञ्च दुषणम् । दि० प्र०। 8 द्वित्वसंख्या कल्पनारूपेति चेत् । दि० प्र०। 9 अभावात् । दि० प्र०। 10 सांख्यस्य । दि० प्र०। 11 सांख्यः । दि० प्र० ।
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