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अष्टसहस्री
[ च० प० कारिका ७१-७२
भा'सभेदाद् घटपटादिवदिति चेन्न, तस्यैकत्वाविरोधित्वात्। 'उपयोगविशेषाद्रूपादिज्ञाननिर्मासभेद.' स्वविषयकत्वं न वै निराकरोति, सामग्रीभेद' युगपदेकार्थोपनिबद्धविशदेतरज्ञानवत् । ततो नासिद्धो हेतुः । नापि विशेषणविरुद्धः, प्रतिभासभेदस्य विशेषणस्याव्यतिरिक्तहेतुना विरोधासिद्धः । स्यान्मतम् 'अव्यतिरिक्तमैक्यमेवोच्यते । ततोयं साध्याविशिष्टो हेतुरनित्यः शब्दो निरोधधर्मकत्वादिति यथा । 'ततो न गमक' इति तदसत्, कथंचिदप्यशक्यविवेचनत्वस्याव्यतिरिक्तस्य हेतुत्वेन प्रयोगात् । व्यतिरेचनं व्यतिरिक्तं विवेचनमिति यावत् । न विद्यते व्यतिरिक्तमनयोरित्यव्यतिरिक्तौ । तयोर्भावोऽव्यतिरिक्तत्वमशक्यविवेचन
जैन-ऐसा नहीं कहना; क्योंकि उन द्रव्य और पर्यायों का जो प्रतिभास भेद है वह एकत्व के साथ विरोधी नहीं है।
चक्षु आदि व्यापार रूप उपयोग विशेष से रूपादि ज्ञान में प्रतिभास भेद होकर भी स्वविषयक एकत्व का निराकरण नहीं करता है। जैसे कि दूर, निकट आदि देश रूप सामग्री के भिन्न होने पर युगपत् एक पदार्थ में उपनिबद्ध विशद् एवं अविशद् ज्ञान । अर्थात् विशद्, अविशद् ज्ञान में होने वाला प्रतिभास भेद स्वविषयक एकत्व का निराकरण नहीं करता है।
इसलिए "प्रतिभासभेदेऽप्यव्यतिरिक्तत्वात्" यह हमारा हेतु असिद्ध भी नहीं है तथा "प्रतिभासभेदेपि" यह विशेषण विरुद्ध भी नहीं है; क्योंकि प्रतिभास भेद रूप विशेषण का अभिन्न हेतु से विरोध असिद्ध है अर्थात् प्रतिभास भेद होकर भी किसी जगत् अभिन्नता रह सकती है ।
योग-ऐक्य ही अव्यतिरिक्त कहलाता है इसलिए यह आपका हेतु साध्य-समदोष से दूषित है। जैसे कि किसी ने कहा है कि "शब्द अनित्य है; क्योंकि निरोध धर्म वाला है। अर्थात् नित्य धर्म वाला है । यह हेतु साध्यसम है। इसलिए आपका हेतु "गमक" नहीं है।
जैन-आपका यह कहना असत् है। कथंचित्-(द्रव्यपर्याय रूप से) भो अशक्य विवेचन रूप अभिन्नत्व ही हेतु रूप से प्रयुक्त किया गया है। यहाँ व्यतिरेचन और व्यतिरिक्त का विवेचन यह अर्थ करना, जिसका मतलब भेद है।
1 ग्रहणाकारस्य । ब्या० प्र० 1 2 सहाथै भा। ब्या०प्र०। 3 एकत्वाविरोधित्वं कथमिति दर्शयन्नाह । व्या०प्र० । 4 कारणविशेषः । व्या प्र०। 5 ज्ञाननिर्भासभेदेपि । इति पा० । दि० प्र०। 6 स्वार्थस्य । दि० प्र० । भेदात् । इति पा० । दि० प्र०। 7 आह स्याद्वादी यत एवं ततोव्यतिरिक्तत्वादिति हेतुरसिद्धो नास्ति तथायमपि हेत: प्रतिभासभेदेपीति विशेषणेन विरुद्धः कस्मात्प्रतिभासभेदस्य विशेषणस्याव्यतिरिक्तत्वादिति हेतुना सह विरोधासंभवात् =अत्राह परः योगादिः कश्चित् हे स्याद्वादिन ! तवाभिप्राय एवं किल ऐक्यमेव अव्यतिरिक्तत्वं यतः ततोयं हेतु: साध्येनाभिन्नः कोर्थः साध्यसाधनयोः विशेषो नास्ति यथा शब्द: पक्षो नित्यो भवत्यनित्यत्वात्तस्माद्रव्यपर्याययोरैक्यं इत्येतस्याव्यतिरिक्तत्वादिति हेतुः व्यवस्थापको न स्यादिति चेत् । स्या० यदुक्त त्वया तदुक्तं तदसत्यं कस्मात्कथञ्चिरप्रकारेणाशक्यविवेचनत्वस्याव्यतिरिक्तत्वस्य हेतुत्वेन प्रयोजनात् । दि० प्र०। 8 साध्यविशिष्टो यतः । ब्या० प्र० । 9 एकार्थः । दि० प्र० । 10 निर्वचनात् । दि० प्र० ।
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